हाल ही में, लोक सभा अध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि संसदीय समितियां सहायक होती हैं और सुधार के साधन के रूप में कार्य करती हैं। साथ ही, ये रचनात्मक मार्गदर्शन भी प्रदान करती हैं।
संसदीय समितियों के बारे में
- संसद समितियां वास्तव में संसद सदस्यों के ऐसे पैनल होते हैं, जो सरकार के कार्यों की जांच-पड़ताल करते हैं और कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
- संसदीय समितियां निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं:
- स्थायी समितियां (Standing Committees): ये स्थाई और नियमित समितियां होती हैं। इनमें वित्तीय समितियां और केंद्र सरकार के 24 विभागों से संबंधित स्थायी समितियां शामिल हैं-
- तदर्थ समितियां (Ad hoc Committees): ये किसी विशेष उद्देश्य के लिए गठित होती हैं और कार्य पूरा होने के बाद भंग हो जाती हैं। इनमें विधेयकों पर प्रवर समिति (Select Committee) और संयुक्त समितियां शामिल होती हैं।
संसदीय समितियों का महत्त्व
- जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं: कार्यपालिका के कार्यों पर विधायिका द्वारा निगरानी बनाए रखना आवश्यक है और समितियां ये कार्य बहुत अच्छी तरह निभाती हैं। उदाहरण के तौर पर, लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) वित्तीय मामलों में निगरानी करती है।
- पारदर्शी और प्रभावी शासन सुनिश्चित करती है: ये समितियां अच्छी तरह से शोध की गई सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं तथा कार्यपालिका एवं विधायिका के बीच सेतु का कार्य करती हैं।
- विधायी दक्षता में सुधार करती हैं: चूंकि, समितियां पूरे वर्ष बैठक करती हैं, इसलिए सदन में किसी विधेयक पर चर्चा के लिए समय की कमी की भरपाई कर देती हैं।
- सर्वसम्मति बनाने में भूमिका निभाती हैं: ये समितियां राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति बनाने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।
संसदीय समितियों से जुड़ी चिंताएं
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