हेग स्थित CoA का निर्णय: कोर्ट ने कहा कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि (IWT) को "स्थगित" रखने से जम्मू और कश्मीर की किशनगंगा एवं रतले जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित विवादों पर कोर्ट द्वारा निर्णय देने की अधिकारिता (authority) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- 23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने यह घोषणा की थी कि जब तक पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को नहीं रोकता, तब तक सिंधु जल संधि को स्थगित रखा जाएगा।
विवाद की पृष्ठभूमि

- सिंधु जल संधि (IWT): इस संधि पर 1960 में भारत और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे। इस संधि पर विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई थी।
- नदी जल के बंटवारे के प्रावधान:
- पूर्वी नदियों- सतलुज, ब्यास और रावी का समस्त जल भारत को आवंटित किया गया है।
- पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का जल ज्यादातर पाकिस्तान के लिए निर्धारित किया गया है।
- विवाद:
- दोनों देशों के बीच किशनगंगा (झेलम की सहायक नदी पर) और रतले (चेनाब पर) जलविद्युत परियोजनाओं की डिज़ाइन संबंधी विशेषताओं को लेकर असहमति है।
- वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने डिजाइन संबंधी विशेषताओं पर आपत्ति जताई थी तथा विश्व बैंक के माध्यम से तटस्थ विशेषज्ञों की मांग की थी।
- वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने विवाद को हल करने के लिए कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन द्वारा निर्णय का प्रस्ताव रखा था, जबकि भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा विवाद को हल करने की मांग की थी।
- वर्ष 2022 में विश्व बैंक ने एक तटस्थ विशेषज्ञ और कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन के अध्यक्ष दोनों की नियुक्ति की।
- भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया को स्वीकार किया।
भारत ने इस निर्णय को क्यों खारिज किया:
- कोर्ट की वैधता पर सवाल: भारत का कहना है कि कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन का गठन "अवैध रूप से" हुआ है और यह 1960 की सिंधु जल संधि का खुला उल्लंघन है। इसलिए, इसकी कार्यवाही और निर्णय "अवैध तथा स्वयं में निरर्थक" हैं।
- संधि को स्थगित करने का संप्रभु अधिकार: भारत ने कहा कि वह एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपने अधिकार का प्रयोग कर रहा है और इसलिए संधि को स्थगित करना उसका वैध अधिकार है।