पहलगाम आतंकी हमले के बाद सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का निर्णय लिया। इस फैसले पर तब तक कोई पुनर्विचार नहीं किया जाएगा जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा-पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता।
सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में
- उत्पत्ति: सिंधु जल संधि पर 1960 में भारत और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे। इस संधि पर विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई थी। तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे।
- संधि के मुख्य प्रावधान
- नदी जल के बंटवारे के प्रावधान:
- पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास और सतलुज)– भारत इन नदियों का समस्त जल बिना किसी रोक-टोक के उपयोग कर सकता है।
- पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम और चिनाब)– इन नदियों का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। हालांकि, भारत को विशिष्ट गैर-उपभोग उद्देश्य से कुछ सीमित गतिविधियों की अनुमति प्राप्त है, जैसे- नौवहन, लकड़ी आदि का परिवहन, बाढ़ सुरक्षा या बाढ़ नियंत्रण, मछली पकड़ने या मछली पालन से संबंधित गतिविधियां, इत्यादि।
- डेटा का आदान-प्रदान: जल प्रवाह और उपयोग के संबंध में, प्रत्येक पक्ष द्वारा मासिक आधार पर जानकारी का आदान-प्रदान किया जाता है।
- क्रियान्वयन तंत्र:
- स्थायी सिंधु आयोग का गठन: दोनों देश से एक-एक आयुक्त के साथ एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया जाना आवश्यक है। इससे संचार के लिए एक चैनल बनाए रखा जा सकेगा और यदि संधि की व्याख्या या इसके उल्लंघन से संबंधित कोई संदेह या विवाद हो, तो उसे तत्काल हल किया जा सकेगा।
- मतभेदों एवं विवादों का निपटारा: विविध मुद्दों से निपटने के लिए स्थायी सिंधु आयोग, तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय के माध्यम से त्रि-स्तरीय श्रेणीबद्ध तंत्र का उपयोग किया जाता है।
- संशोधन: संधि के प्रावधानों को दोनों सरकारों के बीच इस प्रयोजन के लिए संपन्न विधिवत अनुसमर्थित संधि द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
- नदी जल के बंटवारे के प्रावधान:
केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति
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