भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार है और कोयला देश की ऊर्जा की जरूरतों का 55% पूरा करता है।
- भारत इस क्षेत्रक को आधुनिक बनाने, पर्यावरण संबंधी अनुपालन बढ़ाने तथा आयात पर निर्भरता कम करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपना रहा है।
कोयला क्षेत्रक में संधारणीय सुनिश्चित करने हेतु पहलें
- ग्रीनिंग और बायो-रिक्लेमेशन: खनन हो जाने के बाद उस क्षेत्र में वनरोपण। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के हरित ऋण कार्यक्रम में कोयला एवं लिग्नाइट PSU की भागीदारी।
- खदान के उपचारित जल का उपयोग: इसका सामुदायिक आपूर्ति जैसे- सिंचाई, औद्योगिक उपयोग (धूल नियंत्रण, अग्निशमन) और पर्यावरण संबंधी सेवाओं (पुनर्भरण, मछली पालन) के लिए उपयोग करना।
- ओवर बर्डन से रेत निकालना: खनन के दौरान निकली अतिरिक्त मिट्टी और पत्थर (जिन्हें ओवर बर्डन कहा जाता है) से रेत को अलग करना। इससे नदी पारिस्थितिकी-तंत्र पुनरुद्धार और संधारणीय विकास संभव होगा।
- ब्लास्ट-फ्री खनन प्रौद्योगिकी: खनन हेतु ड्रिलिंग/ ब्लास्ट से बचने के लिए सरफेस माइनर्स, कंटीन्यूअस माइनर्स व रिपर्स का उपयोग करना।
- स्वच्छ कोयला एवं नवीकरणीय ऊर्जा पहल: इसमें कोयला गैसीकरण, कोल बेड मीथेन (CBM) आदि पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
आयात को कम करने हेतु उपाय
- घरेलू उत्पादन और खपत में वृद्धि: कोयला ब्लॉक आवंटन, निजी क्षेत्रक की भागीदारी और मंजूरी संबंधी प्रक्रिया में तेजी लाई गई है। कोयला आयात को कम-से-कम करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति (IMC) का गठन किया गया है।
- निकासी और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार: इसमें नई रेलवे लाइंस व कोयला परिवहन प्रणालियों को अपग्रेड करना; फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी परियोजनाएं आदि शामिल हैं।
- फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी परियोजनाओं का अर्थ उस बुनियादी ढांचे या प्रणाली से है, जो खनिजों या अन्य संसाधनों को खनन स्थल से सीधे मुख्य परिवहन नेटवर्क (जैसे रेलवे स्टेशन, हाईवे, बंदरगाह आदि) तक पहुंचाती है।
- शक्ति (SHAKTI) नीति के अंतर्गत वित्तीय सहायता: आयातित कोयले से चलने वाले संयंत्र अब घरेलू कोयला अधिक आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।
- कोकिंग कोल मिशन: इसे इस्पात क्षेत्रक के लिए घरेलू कोकिंग कोल आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है।