यह जानकारी IISER भोपाल द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है। इसके तहत 100 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक भंडारण क्षमता वाले 300 से अधिक बड़े जलाशयों के सरकारी रिकॉर्ड की जांच की गई है।
इस अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- अवसादीकरण व गाद के जमा होने से भारत में बांधों की लगभग 50% भंडारण क्षमता कम हो गई है। इससे बिजली उत्पादन में कमी आई है तथा बाढ़ एवं सूखे से संबंधित सुभेद्यता भी बढ़ी है।
- 2050 तक विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र, नर्मदा-ताप्ती बेसिन, पश्चिमी घाट और सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में कई जलाशयों के इस स्थिति में पहुंचने की संभावना है।
- अवसादीकरण के प्राथमिक कारणों में कृषि से संबंधित मृदा अपरदन, वनों की कटाई और बाढ़ शामिल हैं।
भारत में बांधों और इससे जुड़ी सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बारे में:
- विश्व में बांधों की सावधिक संख्या के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले और दूसरे स्थान पर क्रमशः चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
- भारत में लगभग 5700 बड़े बांध हैं।
- बांधों की सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख चिंताएं:
- पुराने होते बांध: भारत में 80% बड़े बांध लगभग 25 वर्ष या उससे अधिक पुराने हैं।
- भूकंपीय सुभेद्यता: भारत में कई बड़े बांध भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में बनाए गए हैं।
- खराब वित्तीय स्थिति: इससे विद्युत संयंत्र के साथ-साथ बांध के अन्य भागों के रखरखाव की स्थिति बिगड़ती है।
बांध की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह
- पुराने बांधों का उपयोग बंद कर देना चाहिए।
- बांध सुरक्षा से संबंधित वर्तमान अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए।
- सरफेस डैम के विकल्प के रूप में सब-सरफेस डैम को अपनाना चाहिए, जैसा कि जापान जैसे देशों द्वारा किया जा रहा है।
- उच्च या बहुत उच्च संवेदनशीलता वाले वर्गीकृत जलाशयों पर तत्काल ध्यान देने और प्रबंधन संबंधी हस्तक्षेप को प्राथमिकता देने की जरूरत है।
बांध की सुरक्षा के लिए शुरू की गई पहलें
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