एक अध्ययन में 2015 से 2023 तक के सैटेलाइट रडार डेटा का विश्लेषण किया गया। इसमें दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-NCT), मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई में भू-धंसाव की गंभीर समस्या देखी गई है।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- प्रभाव: यह समस्या लगभग 80 मिलियन लोगों को प्रभावित कर रही है। इसमें दिल्ली में भू-धंसाव की दर सबसे अधिक 51 मिमी प्रति वर्ष दर्ज की गई है।
- स्थानीयकृत उत्थान: अध्ययन में कुछ शहरों में स्थानीयकृत उत्थान की पहचान की गई, जैसे दिल्ली में द्वारका के पास के क्षेत्र।
भू-धंसाव (Land Subsidence) के बारे में
- अर्थ: यह भूमि की सतह के नीचे स्थित पदार्थों के संचलन, भूमि पर भार के कारण उत्पन्न होने वाले दबाव या इन दोनों के संयोजन के कारण घटित होता है। इसके परिणामस्वरूप, पृथ्वी की सतह धीरे-धीरे नीचे बैठने या अचानक से धंसने लगती है।
- प्राथमिक कारक: अत्यधिक भूजल पम्पिंग, बड़े पैमाने पर खनन, तीव्र शहरीकरण, भूपर्पटी में प्राकृतिक हलचल आदि।
- भू-धंसाव वाले क्षेत्र: असम और सिक्किम के आसपास के क्षेत्र (फॉल्ट गतिविधि व हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण के कारण), जोशीमठ एवं मसूरी जैसे हिमालयी शहर (अनियमित विकास के कारण), आदि।
भू-धंसाव के प्रभाव
- अवसंरचना पर प्रभाव: अध्ययन के अनुसार दिल्ली में 2000 से अधिक इमारतें असमान भू-धंसाव के कारण गंभीर क्षति के जोखिम में हैं।
- तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव: इन क्षेत्रों में लवणीय जल का प्रवेश बढ़ जाता है, जिससे ताजा जल दूषित होने लगता है और फसलों को नुकसान पहुंचता है।
- आपदाएं: इमारतों में दरारें आ जाती हैं या वे ढह जाती हैं, सड़कें टूट जाती हैं, और जल निकासी नेटवर्क अव्यवस्थित हो जाते हैं। इससे अक्सर बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है जो मानव जीवन को प्रभावित करती है।
- दीर्घकालिक पारिस्थितिक जोखिम: यह नदी के प्रवाह को बदल देता है; जलीय और स्थलीय पर्यावासों को प्रभावित करता है, तथा पीटभूमि व दलदल से कार्बन उत्सर्जन को तीव्र कर सकता है।
भू-धंसाव को रोकने के उपाय
- नवोन्मेषी समाधान: सूख चुके जलभृतों का कृत्रिम पुनर्भरण; भूमि में स्थिरीकरण अभिकारकों को डालने वाली डीप सॉइल मिक्सिंग आदि।
- उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियां:
- PSInSAR- पर्याप्त स्थिर संरचनाओं वाले शहरों के लिए,
- SBAS-InSAR- कृषि या वनस्पति वाले क्षेत्रों के लिए, और
- SqueeSAR- पहाड़ी इलाकों के लिए आदि।