रुतिकुमारी बनाम ज़ानमाई लैब्स प्राइवेट लिमिटेड मामले में, न्यायालय ने एक निवेशक को सुरक्षा प्रदान की थी। गौरतलब है कि इस निवेशक की डिजिटल परिसंपत्ति एक बड़े साइबर हमले के बाद क्रिप्टो एक्सचेंज पर फ्रीज़ कर दी गई थी।
- 2020 में न्यूजीलैंड हाईकोर्ट ने भी क्रिप्टोकरेंसी को डिजिटल परिसंपत्ति और ऐसी संपत्ति माना था, जिसे ट्रस्ट के तहत रखा जा सकता है।
निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- क्रिप्टोकरेंसी की प्रकृति: न्यायालय ने माना कि यह न तो कोई मूर्त संपत्ति है और न ही यह कोई मुद्रा है। इसके विपरीत, यह एक ऐसी परिसंपत्ति है, जिसका उपयोग किया जा सकता है, अपने पास रखा जा सकता है और ट्रस्ट में रखा जा सकता है।
- न्यायालय ने संपत्ति के सिद्धांतों पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों को दोहराया और कहा कि वे क्रिप्टोकरेंसी पर भी समान रूप से लागू होते हैं।
- कानूनी स्पष्टीकरण: न्यायालय ने माना कि भारतीय कानून के तहत, क्रिप्टोकरेंसी को वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसे आयकर अधिनियम, 1961 के तहत सट्टा लेन-देन नहीं माना जाता है।
- RBI प्रतिबंध पर स्पष्टीकरण (2018): इस पर न्यायालय ने कहा कि RBI ने वर्चुअल मुद्राओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया था, बल्कि इसने केवल बैंकों को उनके व्यापार की सुविधा देने से रोका था।
निर्णय का महत्त्व
- विनियामक अस्पष्टता को दूर करना: यह फैसला डिजिटल परिसंपत्तियों को कानूनी रूप से स्वामित्व योग्य संपत्तियों के रूप में ऐतिहासिक न्यायिक स्वीकृति प्रदान करता है।
- निवेशकों की सुरक्षा: इसके कारण निवेशक एक्सचेंज-आधारित नुकसान-साझाकरण योजनाओं पर निर्भर रहने की बजाय बैंक गारंटी जैसे पारंपरिक परिसंपत्ति उपचारों की मांग कर सकते हैं।
क्रिप्टोकरेंसी क्या है?
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