उच्चतम न्यायालय ने कुछ माह पहले वनशक्ति मामले में अपने निर्णय में पूर्व-प्रभाव (ex post facto) से पर्यावरणीय मंज़ूरी देने पर रोक लगा दी थी।
- वनशक्ति मामले में शीर्ष न्यायालय ने केंद्र की वर्ष 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन (OM) को रद्द कर दिया था। इनमें कोई भी परियोजना शुरू होने के बाद उसे पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान करने वाले प्रावधान शामिल थे।
वनशक्ति मामले में दिए गए निर्णय को वापस लेने का कारण:
- कानूनी पूर्व-निर्णयों की उपेक्षा: भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वनशक्ति मामले में निर्णय देते वक्त समान संख्या वाले न्यायाधीशों की अन्य पीठों के पिछले निर्णयों का ध्यान नहीं रखा गया। इस प्रकार वह अनजाने में लिया गया त्रुटिपूर्ण निर्णय (per incuriam) था।
- उदाहरण के लिए: डी. स्वामी बनाम कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2021) मामले में शीर्ष न्यायालय ने निर्णय दिया था कि असाधारण परिस्थितियों में पूर्व-प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी दी जा सकती है।
- एलेम्बिक फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (2020) मामले में उच्चतम न्यायालय ने पूर्व-प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी को तो हतोत्साहित किया, लेकिन मौजूदा पूर्व-प्रभाव वाली पर्यावरणीय मंजूरियों को मौद्रिक दंड देने के निर्देश के साथ नियमित कर दिया था।
- आर्थिक लागत: वनशक्ति मामले में दिए गए निर्णय का अनुपालन करने से पूरी हो चुकी सार्वजनिक परियोजनाओं की संरचनाओं को ध्वस्त करना पड़ेगा।
- इसके अलावा, बड़ी संरचनाओं को ध्वस्त करने से अधिक प्रदूषण फैल सकता है, जैसे कि मलबा जमा होना, पुनर्निर्माण से उत्सर्जन आदि।
पूर्व-प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी के बारे में:
- पूर्व-प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी का अर्थ है कि कोई परियोजना बिना पर्यावरणीय मंजूरी (EC) लिए शुरू हो जाती है, और बाद में उसे मंजूरी दे दी जाती है ताकि वह अपना कार्य जारी रख सके।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 में स्पष्ट रूप से किसी परियोजना के शुरू होने से पहले 'पूर्व-पर्यावरणीय मंजूरी' लेने का प्रावधान है।
- इससे पहले, कॉमन कॉज बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले (2017) में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि पूर्व-प्रभाव या पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी की अवधारणा पर्यावरणीय-न्याय संबंधी कानून में स्वीकार्य नहीं है।
भारत में पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC)
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