यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) तथा जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) ने तैयार की है। यह रिपोर्ट वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता (Global Methane Pledge: GMP) की शुरुआत के बाद मीथेन उत्सर्जन में कमी के मामले में हुई प्रगति को रेखांकित करती है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- मीथेन की वायुमंडलीय सान्द्रता (Concentrations): यह पूर्व-औद्योगिक काल से दोगुनी से अधिक हो गई है। यह 2020 में लगभग 352 मिलियन टन (Mt) प्रति वर्ष तक पहुँच गई थी। इसके 2030 तक 5% तक और बढ़ने की उम्मीद है।
- बढ़ते वैश्विक उत्सर्जन का प्रभाव: 2020 की तुलना में 2030 तक यह वार्षिक 24,000 अतिरिक्त अकाल मृत्यु और 2.5 मिलियन टन फसल हानि में योगदान देगा।
- भारत का मामला: भारत चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मीथेन उत्सर्जक है। यह वार्षिक लगभग 31 मिलियन टन मीथेन का उत्सर्जन करता है। भारत में मुख्य रूप से पराली जलाने से अधिक मीथेन उत्सर्जन होता है।
मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिए प्रमुख पहलें
- वैश्विक:
- वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता (GMP): इसके तहत 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% की कटौती करने का संकल्प लिया गया है।
- इसे 2021 में COP26 (ग्लासगो) के दौरान जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन CCAC) ने प्रस्तुत किया था।
- भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन वेधशाला (IMEO): इसका नेतृत्व UNEP करता है।
- वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता (GMP): इसके तहत 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% की कटौती करने का संकल्प लिया गया है।
- भारत:
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA);
- चावल से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने की प्रौद्योगिकियां: चावल सघनीकरण प्रणाली; प्रत्यक्ष धान बुवाई आदि;
- प्रत्यक्ष धान बुवाई में धान के पौध की रोपाई के दौरान खेत में खड़े पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
- फसल विविधीकरण कार्यक्रम आदि।
