संसदीय समिति की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आज के जटिल और व्यापक दुष्प्रचार वाले माहौल में फेक न्यूज़ यानी फर्जी ख़बरों से निपटने का वर्तमान तंत्र अधिक प्रभावी नहीं है।
फेक न्यूज पर अंकुश लगाने हेतु वर्तमान तंत्र
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: यह कानून ऑनलाइन समाचार व करेंट अफेयर्स कंटेंट तथा क्यूरेटेड ऑडियो–वीडियो कंटेंट के प्रकाशकों के विनियमन हेतु बनाया गया है।
- भारतीय न्याय संहिता: इस संहिता की धारा 353 लोगों को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से झूठी जानकारी या अफवाह फैलाने को अपराध घोषित करती है।
- अन्य तंत्र: इनमें शामिल हैं; सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000; पत्र सूचना कार्यालय (PIB) के अंतर्गत फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना, केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 (निजी सैटेलाइट चैनलों के लिए)।
संसदीय समिति की टिप्पणियां एवं सिफारिशें
| विषय-क्षेत्र | वर्तमान तंत्र की कमियां | समिति की सिफारिशें |
वैधानिक परिभाषा का अभाव | किसी भी वर्तमान कानून में ‘फेक न्यूज’ शब्दावली की स्पष्ट परिभाषा नहीं है। |
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विनियामकीय तंत्र की कमियां | आईटी अधिनियम के "सेफ हार्बर" प्रावधानों के कारण मध्यवर्तियों (सोशल मीडिया प्लेटफार्म) को किसी तीसरे पक्ष द्वारा पोस्ट किए गए कंटेंट की जवाबदेही लेने से छूट मिलती है। हालांकि उन्हें यह सिद्ध करना होता है कि उन्होंने उचित सावधानी बरती थी। | आईटी अधिनियम की संबंधित धाराओं की फिर से समीक्षा करके मध्यवर्तियों की जवाबदेही तय की जाए। यह अधिक आवश्यक हो गया है क्योंकि एल्गोरिदम, राजस्व बढ़ाने के बहाने सनसनीखेज कंटेंट को बढ़ावा दे रहे हैं।
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विदेशों से दुष्प्रचार से निपटने पर अधिकार क्षेत्र नहीं होना | विदेशी कंटेंट निर्माताओं को जवाबदेह ठहराना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनके विनियमन के लिए अलग-अलग देशों में क़ानून अलग-अलग हैं।
| एक अंतर-मंत्रालयी कार्य-बल (टास्क-फोर्स) का गठन किया जाए। इसमें विदेश मंत्रालय तथा विधि विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए।
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प्रौद्योगिकी की प्रगति से जुड़ी चुनौतियां | अधिक लोगों के इंटरनेट से जुड़ने और कम डिजिटल साक्षरता के कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उपयोग से सृजित वीडियो और डीपफेक्स कंटेंट अधिक लोगों तक पहुंच रहा है।
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