जर्नल ‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species) से खतरे पर चेतावनी दी गई है | Current Affairs | Vision IAS
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आक्रामक विदेशी प्रजातियां ऐसे पादप, पशु या सूक्ष्मजीव हैं जो किसी पारिस्थितिकी तंत्र की देशज प्रजातियां नहीं होती, लेकिन वहां पहुँचने के बाद तेजी से फैलकर स्थानीय पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ देती हैं। 

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष 

  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों का विस्तार: प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग 15,500 वर्ग किलोमीटर के प्राकृतिक क्षेत्र में कम से कम एक नई ऐसी प्रजाति प्रवेश कर जाती हैं।
    • ये प्रजातियां पश्चिमी घाट, हिमालय और पूर्वोत्तर जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अपने विस्तार-क्षेत्र को दोगुना कर चुकी हैं।
  • प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: भारत के लगभग दो-तिहाई प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों में अब कम से कम 11 बड़ी आक्रामक विदेशी प्रजातियां मौजूद हैं।
    • इनमें लैंटाना कैमरा, क्रोमोलाईना ओडोरेटा, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा, आदि शामिल हैं।
  • जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रसार: आर्द्र बायोम की आक्रामक विदेशी प्रजातियां   तापमान बढ़ने और मृदा की नमी कम होने से तेजी से फैलती हैं। इनमें एगेरेटिना एडेनोफोरामिकानिया माइक्रान्था जैसी प्रजातियां शामिल हैं। 
    • वहीं शुष्क बायोम की आक्रामक प्रजातियां वर्षा की मात्रा बढ़ने के साथ अधिक क्षेत्रों में फैलने लगती हैं। जैसे- जैंथियम स्ट्रूमेरियम।  

आक्रामक विदेशी प्रजातियों के दुष्प्रभाव

  • आजीविका के लिए खतरा: जैसे-प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा की घनी, कांटेदार झाड़ियां चरागाह, ईंधन और जल जैसे संसाधनों की प्राप्ति में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इसका पराग (Pollen) श्वसन रोग का कारण बन सकता है।
  • वन्यजीवों को खतरा: वर्ष 2022 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने 1 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक के बाघ पर्यावास को प्रभावित किया।
  • जैव विविधता के लिए खतरा: जैसे-लैंटाना कैमरा ने पश्चिमी घाट में देशज (नेटिव) वनस्पतियों को बड़े पैमाने पर नीचे दबा दिया।
  • आर्थिक नुकसान: 1960–2020 के बीच भारत को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के कारण लगभग 127.3 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा। 

आगे की राह

  • राष्ट्रीय मिशन की आवश्यकता: आक्रामक विदेशी प्रजातियों की समस्या से निपटने के लिए बेहतर समन्वय और एकीकृत कार्रवाई हेतु राष्ट्रीय मिशन की आवश्यकता है। वर्तमान में भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियों से निपटने के लिए कोई विशेष राष्ट्रीय संस्थागत तंत्र या डेटाबेस मौजूद नहीं है।
  • रोकथाम: व्यापार, यात्राओं और जहाजरानी (जैसे-ब्लास्ट जल प्रबंधन) पर सख्त निगरानी के द्वारा  नई आक्रामक विदेशी प्रजाति के देश में प्रवेश को रोकना चाहिए।
  • सशक्तिकरण: आक्रामक विदेशी प्रजातियों से प्रभावित समुदायों को वन भूमि की पुनर्बहाली और ऐसी प्रजातियों पर निगरानी रखने की प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।
  • सर्वश्रेष्ठ वैश्विक कार्य-प्रणालियों (Best practices) को अपनाना: जैसे न्यूज़ीलैंड में सभी नए या आयातित उत्पादों का अनिवार्य ‘कीट जोखिम विश्लेषण’ किया जाता है। इससे विदेशी प्रजातियों के संभावित आक्रमणों का पूर्वानुमान मिल जाता है। यह पद्धति अपनाई जा सकती है। 
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