संसदीय समिति ने यह प्रकट किया है कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत वैधानिक आवश्यकताओं के बावजूद, लोकपाल की जांच एवं अभियोजन (Prosecution) शाखाएं अपर्याप्त रूप से परिचालित हैं।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के बारे में
- यह अधिनियम कुछ लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों से निपटने पर केंद्रित है। इसके लिए यह केंद्र स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त के पदों की स्थापना को अनिवार्य करता है।
- इसमें निम्नलिखित की स्थापना के लिए भी प्रावधान किए गए हैं:
- जांच शाखा (धारा 11): इसकी अध्यक्षता जांच निदेशक करता है। इसका कार्य लोक सेवक द्वारा किए गए कथित अपराध की प्रारंभिक जांच करना है, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय है।
- अभियोजन शाखा (धारा 12): इसकी अध्यक्षता अभियोजन निदेशक करता है। इसका कार्य इस अधिनियम के तहत लोकपाल द्वारा सुनवाई की जा रही किसी भी शिकायत के संबंध में आरोपित लोक सेवकों का अभियोजन करना है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट
- निष्कर्ष
- जांच शाखा: अस्थाई रूप से प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों की सेवाएं ली जा रहीं हैं, लेकिन इसका पूर्ण संचालन अधूरा है।
- अभियोजन शाखा: अभी तक केवल बहुत कम मामले अभियोजन चरण तक पहुंचे हैं। इस प्रकार, एक पूर्ण विकसित पृथक शाखा अभी तक स्थापित नहीं की गई है।
- सिफारिशें: समिति ने दोहराया कि दोनों शाखाओं का पूर्ण गठन छह महीनों के भीतर किया जाना चाहिए। साथ ही, उसने जांच और अभियोजन दोनों शाखाओं को परिचालित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का भी आग्रह किया।
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