परिचय
हाल ही में, केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपनी 60वीं वार्षिक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में सभी श्रेणियों के अधिकारियों/ कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 74,203 शिकायतें प्राप्त हुईं। इनमें से 66,373 का निपटारा कर दिया गया, जबकि 7,830 मामले अभी लंबित हैं।
इसके अलावा, लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने के लिए, भारत के लोकपाल ने भी लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 11 के तहत एक इंक्वायरी विंग (Enquiry Wing) की स्थापना की है।
इसी संदर्भ में, कर्नाटक के लोकायुक्त ने भी मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में कथित अनियमितताओं के कारण विभिन्न आरोपियों से पूछताछ की है।
भ्रष्टाचार
- परिभाषा: भ्रष्टाचार को आमतौर पर "व्यक्तिगत लाभ के लिए सार्वजनिक पद के दुरुपयोग" के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- इसकी विस्तृत परिभाषा में किसी व्यक्ति द्वारा राजनीतिक पद, निगम में प्रभावशाली भूमिका, निजी संपत्ति या महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच, या उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण प्राप्त शक्ति और प्रभाव का दुरुपयोग करना भी शामिल है।
- भ्रष्टाचार से प्राप्त लाभ: भ्रष्टाचार से प्राप्त लाभ में वित्तीय (रिश्वत) और गैर-वित्तीय (संरक्षण, भाई-भतीजावाद, गबन, शक्ति में वृद्धि आदि) दोनों शामिल हैं।
हितधारक | भूमिका/ नैतिक दुविधाएं |
लोक प्राधिकारी |
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नागरिक |
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नागरिक समाज |
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न्यायपालिका |
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मीडिया |
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नैतिक प्रणाली और भ्रष्टाचार | ||
नैतिक प्रणाली | मुख्य सिद्धांत | भ्रष्टाचार पर दृष्टिकोण |
डीओन्टोलॉजी या कर्तव्य शास्त्र | कोई भी कार्य नैतिक माना जाता है यदि उसके साथ कर्तव्य या दायित्व की सार्वभौमिक भावना जुड़ी होती है। | कांट के नैतिक दर्शन पर यह नैतिक प्रणाली आधारित है। इसके तहत भ्रष्टाचार को अनैतिक अथवा नैतिक रूप से बुरा कार्य माना जाता है क्योंकि यह सर्वोच्च नैतिक सिद्धांत एवं उसके साथ जुड़ी कर्तव्य की स्वाभाविक भावना के विरुद्ध होता है। |
उपयोगितावाद | उपयोगितावाद के अनुसार, यदि किसी कार्य से ज्यादातर लोगों को खुशी मिले और कम से कम लोगों को दुख हो, तो वह काम नैतिक रूप से सही माना जाएगा। इसका आकलन उस कार्य विशेष से लाभ उठाने वाले लोगों की संख्या या उस कार्य विशेष से लोगों को होने वाली संतुष्टि की मात्रा के संदर्भ में किया जाता है। | भ्रष्टाचार का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह सामुहिक भलाई को खतरे में डालता है और बहुत बड़ी संख्या में लोगों को पीड़ा पहुंचाता है।
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कॉन्ट्रैक्टेरियनिज्म या अनुबंधवाद | हमारे कार्य तभी तक उचित माने जाते हैं जब वे दूसरों के अधिकारों का सम्मान करते हैं और उस सामूहिक सामाजिक अनुबंध को बनाए रखते हैं जिस पर समाज का आधार टिका है। | भ्रष्टाचार किसी भी तरह से सामाजिक सामंजस्य या लोगों को एक साथ लाने वाले सामाजिक अनुबंध को बढ़ावा नहीं देता है, बल्कि इसे खतरे में डालता है।
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भ्रष्टाचार के नैतिक निहितार्थ
- असमानता: भ्रष्टाचार से संसाधनों और अवसरों तक पहुंच में असमानता पैदा होती है। यह उन लोगों को विशेष लाभ पहुंचाता है जो रिश्वत देने या एहसान करने में सक्षम होते हैं। इससे न्याय के नैतिक सिद्धांत का उल्लंघन होता है, जो सभी के साथ समान और निष्पक्ष व्यवहार की अपेक्षा करता है।
- जॉन रॉल्स ने न्याय के अपने सिद्धांत में तर्क दिया है कि निष्पक्षता सामाजिक संस्थाओं की आधारशिला होनी चाहिए।
- विश्वास का उल्लंघन: लोक पदधारियों का यह नैतिक कर्तव्य है कि वे नागरिकों के हित में कार्य करें। इससे सार्वजनिक संस्थानों में लोगों के विश्वास को बढ़ावा मिलता है। भ्रष्टाचार संस्थाओं में जनता के इस विश्वास को कमजोर करता है, जो समाज के सही संचालन के लिए आवश्यक है।
- हितों का टकराव: भ्रष्टाचार के जरिए, महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज कर अपने व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता देते हैं।
- भ्रष्टाचार में परिणामवादी (Consequentialism) दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जहां व्यक्ति अपने नैतिक दायित्वों की उपेक्षा करते हुए अपने व्यक्तिगत लाभ के आधार पर अपने कार्यों को उचित ठहराते हैं।
- सामाजिक न्याय को क्षति: भ्रष्टाचार सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता का क्षरण करता है और समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों के हितों को नुकसान पहुंचाता है। विकास संबंधी परियोजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं या शिक्षा के लिए निर्धारित धन का गबन कर लिया जाता है। इससे नागरिक आवश्यक सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
- सत्यनिष्ठा का क्षरण: जब भ्रष्टाचार आम बात हो जाती है, तो यह एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देता है, जहां बेईमानी, रिश्वतखोरी और हेरफेर को सिस्टम के हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।
- नैतिक पतन: नैतिक सापेक्षवाद (Moral relativism) का रवैया समाज के नैतिक ताने-बाने को कमज़ोर करता है, क्योंकि व्यक्ति पूर्ण नैतिक मानकों का पालन करने के बजाय परिस्थितियों के आधार पर भ्रष्ट कार्यों को तर्कसंगत बनाने लगते हैं।
- विधि के शासन को कमज़ोर करना: जब लोक अधिकारी भ्रष्ट होने लगते हैं, तो कानून का प्रवर्तन चयनात्मक या मनमाना हो जाता है। इससे कानून व्यवस्था खराब हो सकती है और कानूनों का अनुचित ढंग से पालन होने लगता है।
भ्रष्टाचार से निपटने के लिए द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें
- मिलीभगत वाली रिश्वतखोरी: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि मिलिभगत वाली रिश्वतखोरी को एक विशेष अपराध बनाया जा सके। यह एक ऐसा अपराध है जिसके परिणामस्वरूप राज्य, जनता या सार्वजनिक हित को नुकसान होता है।
- मिलिभगत वाली रिश्वतखोरी के लिए सजा अन्य रिश्वत के मामलों से दोगुनी होनी चाहिए।
- अभियोजन के लिए मंजूरी: रंगे हाथों पकड़े गए या आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने के मामले में पकड़े गए लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
- भ्रष्ट लोक सेवकों का हर्जाना देने का दायित्व: कानून में यह प्रावधान होना चाहिए कि जो लोक सेवक अपने भ्रष्ट कृत्यों से राज्य या नागरिकों को नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें नुकसान की भरपाई करने के लिए उत्तरदायी बनाया जाएगा। इसके अलावा, उन्हें हर्जाने के लिए भी उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।
- मुकदमों में तेजी लाना: मुकदमों के विभिन्न चरणों के लिए समय सीमा तय करने वाला एक कानूनी प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए।
- व्हिसलब्लोअर्स (Whistleblowers) को संरक्षण: झूठे दावों, धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्हिसलब्लोअर्स की निजता और गुमनामी सुनिश्चित करके उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। साथ ही, उन्हें करियर में किसी भी प्रकार के भेदभाव से सुरक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए।
- विधि निर्माताओं को मिली उन्मुक्ति: संविधान के अनुच्छेद 105(2) में संशोधन किए जाने चाहिए ताकि संसद के सदस्यों को सदन के कर्तव्यों से जुड़े मामले या बाहर के अन्य मामले में किए गए किसी भी भ्रष्ट कार्य के लिए उन्मुक्ति न मिले।
- राज्य विधायिका के सदस्यों के संबंध में अनुच्छेद 194(2) में इसी तरह के संशोधन किए जा सकते हैं।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सुझाए गए उपाय
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निष्कर्ष
भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, जो शासन, सामाजिक न्याय और जनता के विश्वास को कमजोर कर रहा है। भ्रष्टाचार को कम करने और सुशासन को बढ़ावा देने के लिए पारदर्शिता, सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक भागीदारी की संस्कृति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
अपनी नैतिक अभिक्षमता का परीक्षण कीजिएआप एक ऐसे क्षेत्र के जिला मजिस्ट्रेट हैं, जहां एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना कई वर्षों से लंबित है। यह परियोजना क्षेत्र के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है और यह सार्वजनिक परिवहन में सुधार करके स्थानीय नागरिकों के जीवन को काफी हद तक बेहतर बनाने की क्षमता रखती है। हालांकि, आपको पता चलता है कि इस देरी का कारण व्यापक भ्रष्टाचार है, जिसमें लोक अधिकारियों और निजी ठेकेदारों की मिलीभगत शामिल है। ये हितधारक रिश्वतखोरी में लगे हुए हैं, परियोजना की लागत बढ़ा रहे हैं और परियोजना के लिए निर्धारित धन का गबन कर रहे हैं। जिला मजिस्ट्रेट के रूप में, आपको निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
उपर्युक्त केस स्टडी के आधार पर, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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