यह रिपोर्ट भारत के R&D तंत्र का मानचित्रण करती है, चुनौतियों को रेखांकित करती है और सुधारों के लिए सुझाव देती है।
भारत में R&D की वर्तमान स्थिति
- अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD): यह वर्ष 2020-21 में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जो पिछले दो दशकों में आठ गुना वृद्धि को दर्शाता है। हालांकि, यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 0.6% से 0.7% है।
- वित्त-पोषण के स्रोत: भारत के कुल R&D व्यय का बड़ा हिस्सा सरकारी क्षेत्रक (63.6%) द्वारा वहन किया जाता है।
- क्षेत्रक-वार वितरण: सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा R&D व्यय के मामले में कृषि और संबद्ध क्षेत्रक में सर्वाधिक व्यय (51%) किया जाता है। इसके बाद स्वास्थ्य, आईटी और दूरसंचार क्षेत्रक आते हैं।
- भौगोलिक संकेंद्रण: दक्षिण भारत में 36% से अधिक सार्वजनिक R&D संस्थान स्थित हैं, जबकि पूर्वोत्तर में केवल 1.8% संस्थान हैं, जो काफी कम है।
- शहरों में अधिक उपस्थिति: केंद्र सरकार के लगभग 48% R&D संस्थान भारत के 10 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित हैं।
प्रमुख सिफारिशें
- उद्योग समूहों के साथ निकटता: भविष्य की R&D संस्थाओं को संबंधित विशिष्ट उद्योगों के निकट स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि बेहतर सहयोग सुनिश्चित हो सके।
- केंद्रीकृत अनुसंधान केंद्र: संसाधनों को साझा करने में सक्षम बनाने, विभिन्न उद्योगों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और एक से अधिक उद्योगों में विशेषज्ञता को एक साथ लाने के लिए केंद्रीकृत अनुसंधान केंद्रों का निर्माण किया जाना चाहिए।
- सहयोगात्मक मंच: नवाचार को बढ़ावा देने के लिए शोधकर्ताओं, उद्योग पेशेवरों और उद्यमियों के बीच अंतर्क्रिया बढ़ाने हेतु नए मंच बनाए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए- MIT का 'इंडस्ट्रियल लाइजन प्रोग्राम')।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालय (TTOs): शोधकर्ताओं और कंपनियों को अपनी नई तकनीकों को प्रयोगशाला से बाजार तक पहुंचाने में मदद करने के लिए TTOs की स्थापना की जानी चाहिए।
- अन्य सुझाव: प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिए; निजी उद्यमों के साथ साझेदारी करनी चाहिए; स्पष्ट बौद्धिक संपदा (IP) दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए; अवसंरचना संबंधी कमियों को दूर करना चाहिए आदि।
