मौद्रिक और राजकोषीय नीति समन्वय
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार बैठकों में प्रमुख ऋण दरों में महत्वपूर्ण कटौती की है, जिसमें अप्रैल 2025 में 25 आधार अंकों की कटौती और जून में अतिरिक्त 50 आधार अंकों की कटौती शामिल है, जिससे नीतिगत रेपो दर 5.5% हो गई है।
आर्थिक अनुमान और नीतिगत निहितार्थ
- आरबीआई ने 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान लगाया है तथा उम्मीद जताई गई है कि मुद्रास्फीति 4% +/- 2% के लक्ष्य बैंड के भीतर रहेगी।
- मौद्रिक नीति में यह बदलाव हाल ही में आयकर में की गई कटौती के बाद आया है, जो राजकोषीय और मौद्रिक नीति दोनों में विस्तारवादी रुख का संकेत देता है।
- स्थिर समष्टि आर्थिक परिणामों के लिए समग्र मांग और मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीति के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है।
चुनौतियाँ और आर्थिक संकेतक
- नीतिगत बदलावों के बावजूद, मई 2025 में ऋण वृद्धि दर तीन साल के निचले स्तर 9% पर आ गई है और बेरोजगारी दर बढ़कर 5.6% हो गई है।
- मुद्रास्फीति छह वर्ष के निम्नतम स्तर 3% पर आ गयी है, जिससे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बन गयी है।
- टैरिफ युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव जैसी वैश्विक चुनौतियां जोखिम उत्पन्न करती हैं।
नीतिगत विचार और दीर्घकालिक निहितार्थ
- नीतिगत उपायों की प्रभावशीलता को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं, क्योंकि वर्तमान आर्थिक संकेतक आर्थिक कमजोरी के संकेत दे रहे हैं।
- यदि परिवार उपभोग में विलंब करते हैं तो संभावित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे भविष्य में निवेश और उपभोग बढ़ने पर मुद्रास्फीति में वृद्धि हो सकती है।
- पर्याप्त उत्पादन वृद्धि को प्रोत्साहित करने में विफलता से राजकोषीय घाटे में वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी व्यय में कटौती की आवश्यकता पड़ सकती है।
- टिकाऊ आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह कमजोर आबादी के लिए मजदूरी और उपभोग शक्ति को बढ़ावा दे।