सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्र सरकार ने विनिर्माण क्षेत्रक से जुड़े MSMEs को मजबूत करने के लिए म्यूचुअल क्रेडिट गारंटी योजना को मंजूरी प्रदान की है। गौरतलब है कि सरकार ने इस योजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2024-25 में की थी।
'MSMEs के लिए म्यूचुअल क्रेडिट गारंटी योजना' के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- गारंटी कवरेज: MCGS-MSME के तहत स्वीकृत ऋणों के लिए सदस्य ऋणदाता संस्थाओं (MLIs) को राष्ट्रीय क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) द्वारा 60% गारंटी कवरेज प्रदान की जाती है। NCGTC, भारत सरकार के वित्तीय सेवा विभाग की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है।
- सदस्य ऋणदाता संस्थाओं में शामिल हैं: वाणिज्यिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) और अन्य वित्तीय संस्थाएं जो इस योजना के तहत NCGTC के पास पंजीकृत हैं।
- ऋण लेने के लिए पात्रता:
- MSME के पास उद्यम पोर्टल का वैध पंजीकरण होना चाहिए।
- ऋण आवेदक के पास पहले से किसी बैंक की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) नहीं होनी चाहिए।
- ऋण आवेदक को परियोजना लागत का कम-से-कम 75% उपकरण/ मशीनरी पर खर्च करना होगा।
- योजना की अवधि: यह 4 साल तक उपलब्ध होगी या 7 लाख करोड़ रुपये की गारंटी जारी होने तक चलती रहेगी (इनमें जो भी पहले हो)।
- पुनर्भुगतान हेतु शर्तें:
- 50 करोड़ रुपये तक के ऋण: ऐसे ऋण को 8 साल में चुकाना होगा। पहले 2 साल तक मूलधन की किस्तें नहीं देनी होंगी (मोरेटोरियम), सिर्फ ब्याज चुकाना होगा।
- 50 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण: इसका पुनर्भुगतान लंबी अवधि में किया जा सकता है तथा मूलधन की किस्तें चुकाने पर कुछ अवधि के लिए छूट देने (मोरेटोरियम) पर विचार किया जा सकता है।
केंद्रीय बजट 2025-26 में MSMEs के लिए घोषित अन्य प्रमुख उपाय
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भारत के लिए MSMEs का महत्त्व
- GDP में योगदान: MSME क्षेत्रक देश की GDP में लगभग 30% और देश के विनिर्माण उत्पादन में 36% का योगदान देता है।
- रोजगार: भारत में 1 करोड़ से अधिक पंजीकृत MSMEs हैं, जिनमें लगभग 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त है।
- विदेशी मुद्रा की प्राप्ति: MSMEs भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान देते हैं।
- छिपी हुई बेरोजगारी को कम करता है: MSMEs गांवों में कृषि क्षेत्रक से अतिरिक्त श्रमिकों को रोजगार देते हैं, जिससे छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या कम होती है।
- छिपी हुई बेरोजगारी (Disguised unemployment) वह स्थिति है जिसमें किसी आर्थिक गतिविधि में आवश्यकता से अधिक लोग कार्यरत होते है। इसे श्रम संचय (लेबर होर्डिंग) के रूप में भी जाना जाता है।
- ग्रामीण विकास: भारत में कुल MSMEs में से लगभग 50% ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। ये कुल रोजगार का 45% प्रदान करते हैं, जिससे गांवों में आर्थिक विकास और स्वरोजगार को बढ़ावा मिलता है।
MSMEs के समक्ष चुनौतियां
- वित्तीय समस्याएं: अधिकतर MSMEs अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। डाक्यूमेंट्स (जानकारी) नहीं होने के कारण ऋण चुकाने की इनकी क्षमता का सही से आकलन नहीं हो पाता है। साथ ही, अधिकतर MSMEs के पास बैंक में गिरवी रखने के लिए संपत्ति नहीं होती। इन सब वजहों से MSMEs को बैंकों से ऋण लेना कठिन हो जाता है।
- अवसंरचना संबंधी समस्याएं: खराब सड़कें, अनियमित बिजली आपूर्ति और डिजिटल सुविधाओं की कमी के कारण MSMEs के लिए व्यवसाय करना मुश्किल हो जाता है।
- बेची गई वस्तुओं के बदले भुगतान प्राप्ति में देरी : कई MSMEs सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में बड़े उद्योगों को वस्तुओं की आपूर्ति करते हैं। हालांकि, उन्हें कई बार इसका समय पर भुगतान नहीं किया जाता है, जिसके कारण उनके पास नकदी की कमी हो जाती है। इस वजह से कार्यशील पूंजी नहीं होने से व्यवसाय जारी रखना मुश्किल हो जाता है।
- अधिक नियमों के पालन का बोझ: जटिल कर प्रक्रिया, जटिल श्रम कानून और बार-बार बदलती नीतियों के कारण उनके लिए व्यवसाय चलाते रहना कठिन हो जाता है।
- नई प्रौद्योगिकियों का सीमित उपयोग: अक्सर यह देखा जाता है कि MSMEs नई तकनीक अपनाने में देरी करते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता में गिरावट आती है।
- निर्यात से जुड़ी समस्याएं: अपर्याप्त बुनियादी ढांचा तथा भारतीय MSMEs द्वारा पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ESG) रिपोर्टिंग नहीं करने जैसी वजहों से विदेशों में उनके निर्यात प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं।
MSMEs के लिए शुरू की गई पहलें
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आगे की राह
- नीतिगत समर्थन: सरकार को MSMEs की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनुकूल और सहायक नीतियां बनानी चाहिए। इन नीतियों में कर छूट और अवसंरचना विकास आदि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- MSMEs को तेजी से बदलते कारोबारी माहौल के अनुसार सर्वोत्तम व्यावसायिक पद्धतियों (बेस्ट प्रैक्टिसेज) को अपनाने में सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
- ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करना: MSMEs की ऋण पात्रता का आकलन करने के लिए डिजिटल ट्रांजैक्शन ट्रेल्स और ई-कॉमर्स साइट्स से प्राप्त डेटा का उपयोग करना चाहिए। इससे MSMEs को तेजी से ऋण प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- नई प्रौद्योगिकी अपनाना और डिजिटलीकरण: MSMEs को डिजिटल साक्षरता प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करने, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर उनके उत्पादों को बढ़ावा देने और उद्योग 4.0 से जुड़ी प्रौद्योगिकियां अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- बाजार तक पहुँच और विस्तार: व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में MSMEs की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना चाहिए। उनके उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए तथा B2B नेटवर्किंग के लिए प्लेटफॉर्म तैयार करना चाहिए।
- नियमों (रेगुलेशन) को आसान बनाना: नौकरशाही से जुड़ी बाधाओं को कम करने, नियमों के पालन की प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने और व्यवसाय के अनुकूल माहौल बनाने की आवश्यकता है।
- वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (Global Value Chains: GVCs) के साथ एकीकरण: ग्लोबल वैल्यू चेन का हिस्सा बनने से MSMEs उन उत्कृष्ट वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम होंगे, जिनकी वैश्विक बाजार में अधिक मांग है।
- MSMEs क्लस्टर्स के गठन को बढ़ावा देना: ऐसे क्लस्टर्स के गठन से MSMEs के बीच सहयोग, संसाधन को साझा करने, सामूहिक सौदेबाजी को मजबूत करने में मदद मिलेगी।