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जातिगत जनगणना (CASTE CENSUS)

01 Jul 2025
39 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना में यह उल्लेख किया गया है कि लद्दाख जैसे हिमाच्छादित क्षेत्रों में जनगणना की शुरुआत 1 अक्टूबर, 2026 से होगी, जबकि देश के अन्य भागों में जनगणना की शुरुआत 1 मार्च, 2027 से होगी। गौरतलब है कि इस बार की जनगणना में जातिगत जनगणना को भी शामिल किया गया है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • स्वतंत्रता के बाद पहली जातिगत-जनगणना: स्वतंत्रता के बाद यह पहली बार होगा जब जातिगत डेटा (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) को आधिकारिक तौर पर दशकीय जनगणना के तहत एकत्र किया जाएगा।
  • राज्य-स्तरीय जातिगत सर्वेक्षणों में विसंगतियां मिलना: हाल के वर्षों में बिहार, कर्नाटक जैसे कई राज्यों ने अपने स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण कराए हैं। हालांकि, इन सर्वेक्षणों पर अक्सर एकरूपता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता की कमी जैसे आरोप लगते रहे हैं। जाहिर है इससे इन सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता और जनगणना से तुलना पर संदेह पैदा होता है।
    • गौरतलब है कि जातिगत सर्वेक्षण, जातिगत जनगणना से अलग होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जनगणना के लिए भारत के संविधान में प्रावधान किए गए हैं, जबकि सर्वेक्षण के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
  • डिजिटल माध्यम से जनगणना: 16वीं जनगणना में डेटा को पेन और पेपर पर रिकॉर्ड करने के साथ-साथ डिजिटल प्रारूप में भी रिकॉर्ड किया जाएगा। इसके लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग किया जाएगा।

भारत में जनगणना 

  • परिचय: भारत में जनगणना एक दशक के अंतराल पर आयोजित किया जाता है। जनगणना से एक विशेष अवधि में देश के सभी व्यक्तियों से संबंधित व्यापक जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक), सामाजिक और आर्थिक डेटा प्राप्त होता है।
    • भारत में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी और इसके बाद से प्रत्येक दस वर्ष पर नियमित रूप से जनगणना कराई जाती रही है। हालांकि, 2021 में निर्धारित जनगणना को कोविड-19 महामारी के कारण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था।
  • संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:
    • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना संघ सूची का विषय है। यह सातवीं अनुसूची के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 69 में शामिल है। 
    • कानूनी प्रावधान: जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियमावली, 1990 में जनगणना के आयोजन के लिए कानूनी प्रावधान के साथ-साथ जनगणना अधिकारियों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का भी उल्लेख किया गया है।
      • भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त (Registrar General and Census Commissioner: RG&CC) को जनगणना प्रपत्र (Census proforma) डिजाइन करने का अधिकार है। इसमें जाति-संबंधी प्रश्नों को भी शामिल करने का अधिकार शामिल है। इसके लिए जनगणना अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  

जातिगत जनगणना की आवश्यकता क्यों? 

  • संवैधानिक प्रावधान का पालन करने के लिए: अनुच्छेद 340 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की जांच के लिए राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग गठित करने का प्रावधान किया गया है।
  • नीति निर्माण के लिए: सटीक जातिगत डेटा वास्तव में साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण, कल्याणकारी योजनाओं का लक्षित समूहों तक लाभ पहुंचाने और संसाधनों का न्यायसंगत तरीके से आवंटन करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
    • अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes: OBC) समूहों का तर्क है कि उनकी जनसंख्या और पिछड़ेपन पर अपडेटेड डेटा नहीं होने की वजह से राष्ट्रीय संसाधनों पर उनके दावों की अक्सर उपेक्षा की जाती है।
  • सकारात्मक उपाय (Affirmative Action): ये डेटा शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और लोक नियोजन (सरकारी नौकरी) में आरक्षण देने के लिए वंचित समूहों की बेहतर तरीके से पहचान करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही, इस डेटा की मदद से सरकार की नीतियां बेहतर तरीके से लागू की जा सकती हैं और आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर इनमें बदलाव भी किए जा सकते हैं।
    • सुप्रीम कोर्ट ने अपने अलग-अलग निर्णयों में पिछड़े वर्ग को परिभाषित करने के लिए जाति को एक 'प्रासंगिक मानदंड', 'एकमात्र मानदंड' या 'प्रमुख मानदंड' माना है, और आरक्षण नीतियों को जारी रखने के लिए जाति-वार विस्तृत डेटा की मांग की है।
    • भारत के अलग-अलग समुदायों, जैसे- महाराष्ट्र के मराठा, हरियाणा के जाट आदि द्वारा OBC आरक्षण की मांगों को गहराई से और तथ्यों के आधार पर समझने की आवश्यकता है। 
  • उप-वर्गीकरण: जातिगत जनगणना से प्राप्त डेटा के आधार पर OBC और अन्य समूहों के उप-वर्गीकरण में मदद मिल सकती है। इससे लाभों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने तथा OBC समूह की विभिन्न जातियों के बीच व्याप्त असमानताओं को दूर करने में सहायता मिल सकती है।
    • OBC के उप-वर्गीकरण पर 2017 में गठित न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है, लेकिन इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
  • व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना: पिछले कुछ वर्षों या महीनों में कई राज्यों ने जातिगत सर्वेक्षण से जुड़े आंकड़े जारी किए हैं, जिनमें अनेक विसंगतियां देखने को मिली हैं। ऐसी स्थिति में, डेटा-आधारित सुशासन को सुनिश्चित करने के लिए सभी जातियों की पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ गणना पर आधारित एक केंद्रीकृत/ राष्ट्रीय डेटाबेस का निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है।

जातिगत जनगणना से जुड़ी चिंताएं

  • सटीक डेटा और रिपोर्टिंग की समस्या: जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति की जानकारी स्वयं सरकारी अधिकारियों को देगा। ऐसी स्थिति में, यदि अधिकारियों को इस प्रकार के डेटा संग्रहण का पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला हो, तो त्रुटियों अथवा जानबूझकर गलत जानकारी दर्ज किए जाने की आशंका बनी रहेगी।
    • उदाहरण के लिए: 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (Socio-Economic and Caste Census: SECC) में दोहरी प्रविष्टियां/ दोहराव और वर्तनी की अशुद्धियों के कारण जातियों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाई गई, जिससे डेटा का कुछ अंश अनुपयोगी हो गया।  
  • वर्गीकरण से जुड़ी समस्या: केंद्र और राज्यों द्वारा जारी जाति सूचियों में अंतर होने के कारण अक्सर विसंगतियां उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए: हरियाणा में जाटों को OBC में शामिल नहीं किया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश में जाट OBC सूची में शामिल हैं।
  • राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामला: जातिगत जनगणना से कुछ जातियों को विशेष पहचान मिल सकती है, जिससे वे अपनी जाति को आरक्षित श्रेणी (और यदि वे पहले से ही किसी आरक्षण श्रेणी में हैं तो उससे भिन्न अन्य आरक्षित श्रेणी) में शामिल करने की मांग कर सकते हैं। इससे राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है और अशांति फैल सकती है।
    • उदाहरण के लिए: राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के दौरान सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर गुर्जर समुदाय ने खुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की थी।
  • आइडेंटिटी पॉलिटिक्स यानी पहचान की राजनीति को बढ़ावा: जातिगत डेटा जाति आधारित राजनीतिक लामबंदी को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे सामाजिक विभाजन और अधिक गहरा हो सकता है।
  • निजता से जुड़ी चिंताएं: डिजिटल माध्यम से जातिगत जानकारी एकत्र करना वस्तुतः डेटा सुरक्षा और निजता से जुड़ी गंभीर चिंताओं को जन्म देता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल साक्षरता कम है। 

आगे की राह

  • परामर्श प्रक्रिया: भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त के कार्यालय को शिक्षा जगत के विशेषज्ञों, जातीय समूहों, राजनीतिक संगठनों और आम जनता से परामर्श करना चाहिए ताकि जातिगत गणना कराने के सही तरीकों को तैयार किया जा सके।
  • जाति निर्देशिका: आगामी जनगणना में एक विस्तृत राष्ट्रीय जाति निर्देशिका (National directory of castes) बनाई जानी चाहिए, जो अलग-अलग राज्यों में जातीय समूहों के वर्गीकरण और उनके नाम के लिए मानक निर्धारित करे।
    • सरकार को प्रत्येक राज्य के लिए विशिष्ट जातियों की एक ड्राफ्ट सूची तैयार करने हेतु समाजशास्त्रीय/ मानवशास्त्रीय विशेषज्ञों का एक पैनल तैयार करना चाहिए। इस ड्राफ्ट सूची को ऑनलाइन प्रकाशित करके जनता से सुझाव और टिप्पणियां आमंत्रित करनी चाहिए। इस सूची को अंतिम रूप देने के बाद केवल गणना में शामिल लोगों को ही वह सूची दी जानी चाहिए। 
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: जातिगत डेटा एकत्र करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को समुचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि जातिगत गणना में दोहराव और वर्तनी संबंधी त्रुटियों से बचा जा सके। 
    • त्रुटियों को कम करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।

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