सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, नीति आयोग के सी.ई.ओ. ने सुझाव दिया कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership: RCEP) और कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) जैसे बड़े व्यापार समझौतों में शामिल होना चाहिए।
अन्य संबंधित तथ्य
- वर्ल्ड बैंक के 'इंडिया डेवलपमेंट अपडेट' में भी भारत को अपनी व्यापार लागत को कम करने, व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करने और RCEP जैसे FTAs में शामिल होने पर फिर से विचार करने का सुझाव दिया गया है।
- मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement: FTA): FTA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक समझौता होता है जिसके तहत वे आपस में वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार को आसान बनाने के लिए कुछ नियमों पर सहमत होते हैं। इसमें व्यापार के साथ-साथ, निवेश की सुरक्षा और बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण आदि शामिल हो सकते हैं।
- हालांकि, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने भारत को RCEP में शामिल होने के बारे में विचार करने के विश्व बैंक के सुझाव पर असहमति जताई है।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के बारे में![]()
कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) के बारे में
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बड़े व्यापार समझौतों में भागीदारी का महत्त्व
- वैश्विक मूल्य श्रृंखला में एकीकरण: बड़े व्यापार समूहों/ समझौतों में शामिल होने से भारत की आपूर्ति श्रृंखला का विकास और प्रसार हो सकता है। इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत का एकीकरण और भी मजबूत होगा।

- उदाहरण के लिए- व्यापार समझौतों में शामिल होने से स्वदेशी उद्योगों को आवश्यक पूंजीगत वस्तुओं एवं इनपुट को आसानी से आयात करने में मदद मिलेगी, जिससे उनका उत्पादन बढ़ेगा और वे अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा: भारत से होने वाले कुल निर्यात में MSMEs की 40% हिस्सेदारी है। इसलिए, क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों से MSMEs को लाभ हो सकता है।
- व्यापार समूह भारतीय कंपनियों को बड़े निर्यात बाजारों तक पहुंच प्रदान कर सकते हैं। इससे भारतीय कंपनियों की विनिर्माण क्षमता का सदुपयोग सुनिश्चित होगा।
- व्यापार में प्रतिस्पर्धी बने रहना: भारतीय निर्यात के लिए आसियान देश मुख्य प्रतिस्पर्धी हैं। यदि भारत भी आसियान देशों के बराबर का प्रशुल्क लगाता है, तो यह निजी निवेश को और आकर्षित कर सकता है। इससे अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए विदेशी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 'चीन प्लस वन' रणनीति का भी लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
- इससे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप रोजगार सृजन और व्यापारिक गतिविधियों में भी तेजी आएगी।
- एक स्वतंत्र अध्ययन में पाया गया है कि RCEP में शामिल होने पर, भारतीय अर्थव्यवस्था को 2030 तक 60 बिलियन यू.एस. डॉलर का लाभ हो सकता है।
- रणनीतिक उपयोगिता: व्यापार समूहों की सदस्यता क्षेत्रीय व्यापार नीतियों, विशेषकर व्यापार उदारीकरण, लोगों की वीजा मुक्त आवाजाही और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में नीतिगत प्रभाव डालने के अवसर प्रदान करती है।
- उदाहरण के लिए- RCEP भारत की एक्ट ईस्ट नीति के उद्देश्यों के अनुरूप है, जबकि CPTPP हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भागीदारी को और बढ़ा सकती है।
चुनौतियां
- व्यापार असंतुलन: RCEP में चीन का व्यापारिक प्रभाव अधिक है और इस व्यापार समूह से उसे ही सबसे अधिक लाभ मिलने की संभावना है। इससे चीन के साथ भारत का विशाल व्यापार घाटा और बढ़ सकता है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 85 बिलियन यू.एस. डॉलर के आस-पास रहा था।
- चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा 2020 में 81.7 बिलियन डॉलर था, जो बढ़कर 2023 में 135.6 बिलियन डॉलर हो गया।
- सीमित लाभ: भारत का RCEP के 15 में से 13 सदस्यों के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौते (FTA) मौजूद हैं। केवल न्यूजीलैंड और चीन के साथ ही भारत का मुक्त व्यापार समझौता नहीं है।
- भारत का अलग अप्रोच: कराधान उपायों, निवेशक-सरकार विवाद निपटान (Investor-State Dispute Settlement: ISDS), निवेशक की सुरक्षा से जुड़े बाध्यकारी प्रावधान जैसे विषयों पर भारत का रुख इस तरह के व्यापार समझौतों के दृष्टिकोण से अलग होता है।
- उदाहरण के लिए- मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) सिद्धांत को 2015 की मॉडल द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty: BIT) में शामिल नहीं किया गया था।
- कड़ी प्रतिस्पर्धा: मुक्त व्यापार समझौतों के तहत प्रशुल्क दरें कम या शून्य होने से भारत में सस्ते आयातों की बाढ़ आने का खतरा रहता है। इससे घरेलू उद्योगों, विशेषकर उन उद्योगों को नुकसान हो सकता है जो आयातित उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं। भारत का डेयरी सेक्टर एक ऐसा ही उदाहरण है।
- स्वदेशी उद्यम के लिए चुनौती: मुक्त व्यापार समझौतों के सख्त प्रावधान भारत की स्थानीय उद्यमिता और विनिर्माण व्यवस्था के विकास में बाधा उत्पन्न करेंगे, क्योंकि इन समझौतों में कई तरह की पाबंदियों को भी शामिल किया जाता है।
- उदाहरण के लिए- मुक्त व्यापार समझौतों में श्रमिकों की कार्य-दशाएं, पर्यावरण संरक्षण पर सख्त मानदंड आदि अपनाए जाते हैं। इनमें शामिल होने से भारत को इन मानदंडों का पालन करना होगा।
आगे की राह
- मुक्त व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार और फिर से वार्ता शुरू करना: बड़े व्यापार समझौतों में शामिल होने से पहले गहन चर्चा और विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है। इन समझौतों से सभी हितधारकों को होने वाले लाभ और हानि का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
- व्यापार प्रतिस्पर्धा में सुधार करना: गैर-प्रशुल्क बाधाओं को कम करने और व्यापार विविधीकरण को बढ़ावा देने से वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ भारत के एकीकरण में सुधार करने में सहायता मिलेगी।
- निरंतर वार्ता: भारत को बड़े व्यापार समझौतों में अपने अनुकूल शर्तों पर वार्ता जारी रखने की आवश्यकता है।
- दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राथमिकता देना: बड़े व्यापार समझौतों में प्रवेश करते समय आत्मनिर्भर भारत, वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के लक्ष्य और रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
निष्कर्ष
भारत की आर्थिक विकास यात्रा अनूठी रही है। वैसे व्यापार, आर्थिक विकास का एक प्रमुख पहलू है लेकिन किसी भी वैश्विक व्यापार समझौते में शामिल होने से पहले उसके बाध्यकारी शर्तों और उनसे भारत को होने वाले शुद्ध लाभों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। चूंकि वैश्विक ताकतें भारत को इन बड़े व्यापार समझौतों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, ऐसे में भारत को तर्कसंगत और व्यावहारिक विश्लेषण के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।