परिचय
समावेशी संपदा (Inclusive Wealth) की अवधारणा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय- अंतर्राष्ट्रीय मानव और सामाजिक आयाम कार्यक्रम (UNU-IHDP) ने प्रस्तुत की है। समावेशी संपदा/ धन या इन्क्लूसिव वेल्थ में किसी देश के प्राकृतिक, मानवीय, सामाजिक और भौतिक संसाधनों को शामिल किया जाता है। यह दृष्टिकोण भारत के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि भारत के विविध सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के कारण संपदा का व्यापक तौर पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
ग्लोबल वेल्थ इंडेक्स 2023 के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में वैश्विक समावेशी संपदा में लगभग 50% की वृद्धि हुई है, जो मजबूत आर्थिक संवृद्धि को दर्शाती है। हालांकि, इस संवृद्धि के परिणामस्वरूप प्राकृतिक पूंजी में उल्लेखनीय कमी आई है, और पिछले 30 वर्षों में एक चौथाई से अधिक प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो गए हैं। यह स्थिति आर्थिक प्रगति और संसाधनों के संधारणीय प्रबंधन के साथ संतुलन बनाए रखने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
1. समावेशी संपदा क्या है?
समावेशी संपदा किसी देश की कुल संपत्ति को दर्शाती है। इनमें वित्तीय परिसंपत्तियों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन, मानव पूंजी और सामाजिक पूंजी भी शामिल हैं।
1.1. समावेशी संपदा के घटक

- उत्पादित पूंजी: इसमें अवसंरचना, मशीनरी और प्रौद्योगिकी जैसी भौतिक संपत्तियां शामिल हैं। हालांकि, संपदा के पारंपरिक मापन में अक्सर इन परिसंपत्तियों को ध्यान में रखा जाता है, लेकिन दीर्घकालिक आर्थिक कल्याण के लिए इनकी सततता और दक्षता को अब अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
- मानव पूंजी: इसमें कार्यबल का कौशल, ज्ञान और स्वास्थ्य शामिल हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल सेवा और कौशल विकास में निवेश से अधिक उत्पादक एवं परिवर्तनशील श्रम शक्ति तैयार होती है। इससे आर्थिक मजबूती और संवृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
- सशक्त मानव पूंजी विकास सामाजिक नेटवर्क, संबंध और सामुदायिक जुड़ाव की ओर ले जाता है। यह समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण है। मजबूत सामाजिक पूंजी बेहतर अभिशासन सुनिश्चित करती है, संस्थानों में विश्वास पैदा करती है और समस्याओं को हल करने में टीमवर्क को प्रोत्साहित करती है।
- प्राकृतिक पूंजी: इसमें विश्व की प्राकृतिक संपदा जैसे वन, जल, खनिज और जैव विविधता के भंडार शामिल हैं। प्राकृतिक पूंजी पारिस्थितिकी-तंत्र संबंधी सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो मानव जीवन और आर्थिक गतिविधियों के लिए भी आवश्यक हैं।

2. समावेशी संपदा दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता क्यों है?
- पारंपरिक तरीकों में निहित कमियां:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP): यह पर्यावरण के क्षरण, प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की अनदेखी करता है। भारत में, GDP संवृद्धि में वृद्धि से बड़ी संख्या में लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, लेकिन इसकी वजह से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव भी पड़ा है। इससे भारत को प्रतिवर्ष अपनी GDP के लगभग 5.7% के बराबर नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- ग्रीन GDP: यह GDP में से विकास की वजह से पर्यावरण और समाज द्वारा चुकाई गई कीमत को घटाने के बाद निवल GDP को मापती है। हालांकि, यह किसी देश की अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य संसाधनों, जैसे उसके मानव संसाधन या उसके पारिस्थितिकी-तंत्र को ध्यान में नहीं रखती है।
- बेहतर जीवन सूचकांक (बेटर लाइफ इंडेक्स): OECD ने एक रिपोर्ट जारी की है, जो राष्ट्रीय सांख्यिकी की बजाय व्यक्तिगत गतिविधियों को देखकर किसी देश के समग्र कल्याण (वेलबीइंग) को मापने पर केंद्रित है। हालांकि, इसके लिए विकासशील देशों में विश्वसनीय व्यक्तिगत डेटा एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- स्थानीय अप्रोच: भारत के राज्यों के बीच व्यापक भिन्नताओं को देखते हुए संपदा का आकलन करने के लिए स्थानीय अप्रोच अपनाने की आवश्यकता है। यह अप्रोच सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और दीर्घकालिक संधारणीयता में योगदान को ट्रैक कर सकती है।
- समावेशी संपदा दृष्टिकोण वास्तव में समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करता है और इसके लिए कम डेटा संग्रह करने की आवश्यकता होती है। इसलिए, यह विकासशील देशों के लिए अधिक उपयुक्त अप्रोच है, क्योंकि उनके पास डेटा का अभाव है।
- दीर्घकालिक संधारणीयता पर ध्यान: अलग-अलग प्रकार की पूंजी में बदलावों पर विचार करने के बाद स्पष्ट होता है कि समावेशी संपदा दृष्टिकोण नीति निर्माताओं और भागीदारों को मौजूदा आर्थिक गतिविधियों की दीर्घकालिक संधारणीयता का मूल्यांकन करने में मदद करती है।
- उदाहरण के लिए, न्यूजीलैंड ने वेलबीइंग बजट को अपनाया है, जो पारंपरिक आर्थिक मानकों के साथ सामाजिक और पर्यावरणीय संकेतकों को एकीकृत करके लोगों की भलाई एवं पर्यावरणीय संधारणीयता को प्राथमिकता देता है।
- संसाधनों का बेहतर प्रबंधन: समावेशी संपदा दृष्टिकोण सभी प्रकार की पूंजी, विशेष रूप से उन प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन को बढ़ावा देता है, जिन्हें अक्सर पारंपरिक आर्थिक आकलन में कम आंका जाता है या अनदेखा किया जाता है।
- उदाहरण के लिए, कोस्टा रिका का “पर्यावरण सेवा कार्यक्रम (PES) के लिए भुगतान” एक वित्तीय तंत्र है। यह वन पारिस्थितिकी-तंत्र संरक्षण को बढ़ावा देता है और भूमि क्षरण से निपटता है।
- बेहतर नीतिगत निर्णय: किसी देश की संपदा को बेहतर तरीके से समझने से नीति निर्माताओं को यह जानकारी मिलती है कि संसाधनों का आवंटन कैसे किया जाए, निवेश करने के लिए क्या प्राथमिकताएं हों, और विकास की रणनीतियां कैसे विकसित की जाएं।
- उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया का ग्रीन न्यू डील तीन प्रमुख कार्यों पर केंद्रित है: स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करना, नवाचार को बढ़ावा देना और संधारणीय अवसंरचना को विकसित करना।

3. समावेशी संपदा दृष्टिकोण को अपनाने में कौन-सी चुनौतियां विद्यमान हैं?
समावेशी संपदा को मापने की जटिलताओं और चुनौतियों का समाधान करना आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में इसके प्रभावों को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
3.1. डेटा संग्रह और क्षमता संबंधी समस्याएं
- डेटा की उपलब्धता और गुणवत्ता: अलग-अलग देश डेटा संग्रह के लिए अलग-अलग पद्धतियों और परिभाषाओं का उपयोग करते हैं। इससे असंगतियां उत्पन्न होती हैं। कई विकासशील देशों में प्राकृतिक और सामाजिक पूंजी से संबंधित आवश्यक डेटा की कमी है। इसके कारण व्यापक तौर पर आकलन करना मुश्किल हो जाता है।
- डेटा के लिए क्षमता निर्माण: समावेशी संपदा पर डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने के लिए संस्थागत क्षमता विकसित करने हेतु पर्याप्त निवेश एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता हो सकती है।
- समावेशी संपदा का विकास: समावेशी संपदा गतिशील होती है और समय के साथ बदलती रहती है। इसलिए, पूंजी में बदलावों की निगरानी के लिए निरंतर दीर्घकालिक डेटा संग्रह की आवश्यकता होती है।
3.2. समावेशी संपदा का आकलन करना जटिल है
- घटकों की जटिलता: समावेशी संपदा में कई आयाम शामिल हैं, जैसे- उत्पादित पूंजी, प्राकृतिक पूंजी, मानव पूंजी और सामाजिक पूंजी। प्रत्येक आयाम की अलग-अलग विशेषताएं और मूल्यांकन के तरीके हैं, जो मापन प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं।
- प्राकृतिक पूंजी का प्रतिस्थापन: यह सोच कि उत्पादित या मानव पूंजी प्राकृतिक संसाधनों की जगह ले सकती है, ने प्राकृतिक पूंजी को कम करने में योगदान दिया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि निवेश अक्सर संधारणीयता की जगह उत्पादित पूंजी को प्राथमिकता देते हैं। यह असंतुलन संसाधनों की कमी को तेज करता है और समावेशी संपदा के लक्ष्यों को कमजोर करता है। इससे समग्र आकलन फ्रेमवर्क तैयार करना कठिन हो जाता है।
3.3. राजनीतिक बाधाएं
- मौजूदा आर्थिक फ्रेमवर्क के साथ एकीकरण: समावेशी संपदा को मौजूदा आर्थिक पद्धतियों में शामिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। नीति निर्माताओं को पारंपरिक मापदंडों से समावेशी संपदा के मापदंडों की ओर स्थानांतरण करने में कठिनाई हो सकती है, विशेषकर जब मौजूदा प्रोत्साहन GDP संवृद्धि से जुड़े हुए हों।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: समावेशी संपदा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, जो कुछ मामलों में अनुपलब्ध हो सकती है, विशेष रूप से जहां GDP संवृद्धि को प्राथमिकता दी जाती है।
3.4. सार्वजनिक तौर पर स्वीकृति और सांस्कृतिक संदर्भ सीमित हैं
- समझ की कमी: कई हितधारक समावेशी संपदा की अवधारणा से उतने परिचित नहीं हो सकते हैं, जिससे प्रतिरोध या भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके महत्त्व और लाभों को प्रभावी ढंग से से समझाना चुनौतीपूर्ण है, विशेषकर जब पारंपरिक मापदंडों को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है।
- संपदा की धारणा: संपदा को देखने का हमारा नजरिया सांस्कृतिक मूल्य से भी प्रभावित हो सकता है। साथ ही, यदि आर्थिक विकास में अंतर सही तरीके से नहीं समझाया गया तो यह भ्रामक तुलनाओं को जन्म दे सकता है।
4. समावेशी संपदा दृष्टिकोण को अपनाने के लिए क्या-क्या पहलें आरंभ की गई हैं?
समावेशी संपदा दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर (भारत में) और वैश्विक स्तर पर कई पहलें शुरू की गई हैं। ज्ञातव्य है कि यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय संपदा का आकलन करने में पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक कारकों को एकीकृत करता है।
4.1. राष्ट्रीय स्तर पर (भारत में) शुरू की गई पहलें
- प्राकृतिक पूंजी लेखांकन: भारत में केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने 2017 में प्राकृतिक पूंजी लेखांकन और पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (Natural Capital Accounting and Valuation of Ecosystem Services: NCAVES) परियोजना शुरू की थी।
- यह पर्यावरण और आर्थिक लेखांकन प्रणाली (SEEA) फ्रेमवर्क के अनुरूप है। यह फ्रेमवर्क आर्थिक आकलन में प्राकृतिक पूंजी के महत्त्व को दर्शाने के लिए हरित संपदा लेखांकन को संकलित करने पर जोर देता है।
- राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन: यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का हिस्सा है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक पूंजी में योगदान करते हुए वनावरण और गुणवत्ता को बढ़ाना है।
- मानव पूंजी विकास: स्किल इंडिया मिशन कार्यबल के कौशल को बढ़ाकर समावेशी संपदा में मानव पूंजी के महत्त्व को दर्शाता है। ज्ञातव्य है कि कार्यबल कौशल उत्पादकता को बढ़ाता है और आर्थिक मजबूती में वृद्धि करता है।
- प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कार्यक्रम युवाओं की रोजगार प्राप्ति क्षमता में सुधार करने और आय स्तर को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- सतत विकास लक्ष्य (SDG) इंडिया इंडेक्स: इसे नीति आयोग जारी करता है। इसमें समावेशी संपदा के विविध तत्व शामिल हैं। यह सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रगति का पता करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भागीदारी: भारत सरकार विश्व बैंक और UNDP जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर समावेशी संपदा को मापने की अपनी क्षमता को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है।
4.2. वैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरणीय आर्थिक लेखांकन प्रणाली (SEEA): यह फ्रेमवर्क आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े डेटा को एकीकृत करता है। यह देशों के लिए एक मानकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है, ताकि वे अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच के संबंधों को मापने एवं रिपोर्ट करने में सक्षम हों।
- पारिस्थितिकी-तंत्र और जैव विविधता का अर्थशास्त्र (TEEB): इस वैश्विक पहल का उद्देश्य "प्रकृति के मूल्यों को स्पष्ट करना" है। यह पहल जैव विविधता के आर्थिक लाभों और पारिस्थितिकी-तंत्र के क्षरण से जुड़ी लागतों को उजागर करती है।
- संयुक्त राष्ट्र समावेशी संपदा रिपोर्ट: यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी की जाती है। यह देशों की प्राकृतिक, मानव और उत्पादित पूंजी को ध्यान में रखकर, उनकी संपदा का आकलन करती है।
- विश्व बैंक संपदा लेखांकन: व्यापक संपदा लेखांकन और पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (WAVES) पहल देशों को प्राकृतिक पूंजी लेखांकन को लागू करने में मदद करती है। यह पहल विकास संबंधी योजनाओं में प्राकृतिक संसाधनों को शामिल करके सतत विकास को बढ़ावा देती है।
- यूरोपीय संघ की बीयॉन्ड GDP पहल: यह पहल यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को प्रगति मापने के लिए पारंपरिक आर्थिक संकेतकों से भिन्न तरीकों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करती है।
- वैश्विक समावेशी संपदा सूचकांक (IWI) परियोजना सहयोग: संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय और UNEP के इस सूचकांक का उद्देश्य राष्ट्रीय संपदा की व्यापक माप प्रदान करना है। यह सूचकांक तीन प्रकार की पूंजी का आकलन करता है: प्राकृतिक, मानव और उत्पादित। यह इसमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं की दीर्घकालिक संधारणीयता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- जेनुइन प्रोग्रेस इंडिकेटर (GPI): यह GDP का एक वैकल्पिक मापदंड है। यह अर्थव्यवस्था के मापन में पर्यावरणीय और सामाजिक कारकों को ध्यान में रखता है। यह आर्थिक कल्याण का एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- प्राकृतिक पूंजी प्रोटोकॉल: यह नेचुरल कैपिटल कोलिशन द्वारा विकसित किया गया है। यह फ्रेमवर्क व्यवसाय जगत को मानकीकृत तरीके से उनके व्यवसाय के प्रभावों और प्राकृतिक पूंजी पर निर्भरता को पहचानने, मापने और मूल्य निर्धारण करने में मदद करता है।

5. समावेशी संपदा दृष्टिकोण को अपनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
समावेशी संपदा रिपोर्ट और संबंधित अध्ययनों से पता चलता है कि समावेशी संपदा दृष्टिकोण को अपनाने के लिए अलग-अलग उपाय किए जा सकते हैं। इनमें राष्ट्रीय संपदा के आकलन में पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक कारकों को शामिल किया जाता है।
5.1. नीतिगत पहलें:
- नीतियों का एकीकरण: समावेशी संपदा फ्रेमवर्क को राष्ट्रीय और राज्य की नीतियों में शामिल करना चाहिए। इस क्रम में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह GDP और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे मौजूदा फ्रेमवर्क्स का पूरक हो।
- उदाहरण के लिए- जीवाश्म ईंधन के लिए दी जा रही सब्सिडी की बजाय हरित ऊर्जा को अपनाने के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिए, कार्बन करों को लागू करना चाहिए और संसाधन से प्राप्त राजस्व प्रबंधन में सुधार करना चाहिए। ये उपाय पर्यावरण संरक्षण जैसी घरेलू नीतियों के साथ विकास को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं।
- प्राकृतिक पूंजी के अनुकूल निवेश करना: सरकारों को निवेश रणनीतियों को प्राकृतिक पूंजी और समावेशी संपदा से जोड़ना चाहिए।
- इसमें सॉवरेन वेल्थ फंड का उपयोग करना और महामारी जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने की क्षमता बढ़ाने के लिए पर्यावरणीय, सामाजिक और अभिशासन (Environmental, Social, and Governance: ESG) मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
- पायलट कार्यक्रम: अलग-अलग राज्यों में समावेशी संपदा फ्रेमवर्क का परीक्षण करने के लिए लघु स्तर की पायलट परियोजनाओं को शुरू करना चाहिए, ताकि बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए अंतर्दृष्टि और सर्वोत्तम तरीका प्राप्त की जा सकें।
5.2. आकलन संबंधी पहलें:
- स्थानीय स्तर पर संपदा आकलन: अलग-अलग भारतीय राज्यों के लिए स्थानीय समावेशी संपदा उपायों का विकास किया जाना चाहिए। इससे प्राकृतिक, मानव और उत्पादित पूंजी में प्रगति व विषमताओं की प्रभावी निगरानी की जा सकेगी। यह तरीका नीति निर्माताओं को प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रणनीति तैयार करने में मदद करेगा।
- उदाहरण के लिए- केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने ग्रीन वेल्थ लेखांकन संकलित करना शुरू कर दिया है। इसका उपयोग क्षेत्रीय स्तर पर आकलन के लिए भी किया जा सकता है।
- जनसंख्या वृद्धि और भविष्य के कल्याण को ध्यान में रखना: भविष्य में होने वाले जनसांख्यिकीय बदलावों को संपदा आकलन में शामिल किया जाना चाहिए। इससे सुनिश्चित किया जा सकेगा कि नीतियों से सभी पीढ़ियों का कल्याण हो।
- मानव पूंजी लेखांकन को बढ़ाना देना: मानव पूंजी लेखांकन विधि को लागू करने से नीति निर्माताओं को स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रक से संबंधित चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान करने, असमानताओं की पहचान करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने वाली लक्षित नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
- अनुसंधान और विकास: यह जांचने के लिए अध्ययन करना चाहिए कि पूंजी के विविध रूपों के बीच क्या संबंध हैं तथा ये समग्र कल्याण एवं संधारणीयता को कैसे प्रभावित करते हैं। साक्ष्य-आधारित ये अनुसंधान नीतियों में सुधार करने और नई पहलें शुरू करने में मदद कर सकते हैं।
5.3. डेटा और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना:
- संकेतकों के माध्यम से प्रगति का आकलन: राज्यों को विविध प्रकार की पूंजी में प्रगति का आकलन करने के लिए संकेतक विकसित करने चाहिए और नियमित रूप से इन्हें ट्रैक करना चाहिए। इससे रियल टाइम डेटा आधार पर नीतियों में बदलाव किया जा सकेगा।
- उदाहरण के लिए- SDG इंडेक्स से प्राप्त जानकारी समावेशी संपदा की प्रगति को ट्रैक करने में मदद कर सकती है। साथ ही, सुधार के क्षेत्रों के बारे में बता सकती है।
- संधारणीयता के लिए पारिस्थितिकी-तंत्र संबंधी सेवाएं: पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं के मूल्य निर्धारण में सुधार सतत विकास के लिए आवश्यक है। बेहतर डेटा और प्रौद्योगिकी में निवेश करके निर्णय करने वाले लोग पारिस्थितिकी-तंत्रों को सतत रूप से प्रबंधित कर सकते हैं। वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मानव और प्राकृतिक पूंजी, दोनों दीर्घकालिक समृद्धि का समर्थन करती रहें।
5.4. सहभागिता और क्षमता निर्माण:
- हितधारकों की भागीदारी: वंचित समुदायों एवं हितधारकों को संपदा आकलन और विकास रणनीतियों से संबंधित चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उनके हित भी शामिल किए जा रहे हैं।
- इस भागीदारी से अधिक समावेशी नीतियों तैयार होंगी, जो वास्तव में समाज के सभी वर्गों की विविध आवश्यकताओं को दर्शाएगी।
- क्षमता निर्माण और शिक्षा: सरकारी अधिकारियों, अर्थशास्त्रियों एवं सामुदायिक नेतृत्वकर्ताओं को समावेशी संपदा फ्रेमवर्क पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे संधारणीयता और संपदा निर्माण की प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझ सकें।
- जागरूकता अभियान: समावेशी संपदा दृष्टिकोण और संधारणीय विकास से जुड़े इसके लाभों के बारे में जनता को शिक्षित करने हेतु जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए।
- ये प्रयास संवृद्धि के आकलन में केवल पारंपरिक GDP गणना विधि की बजाय प्राकृतिक पूंजी आधारित समावेशी अप्रोच को भी ध्यान में रखने मदद करेंगे।
निष्कर्ष
समावेशी संपदा दृष्टिकोण को अपनाना सतत आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यह केवल वित्तीय लाभों के आकलन की बजाय समग्र कल्याण को प्राथमिकता देता है। यह फ्रेमवर्क प्राकृतिक, मानव, सामाजिक और उत्पादित पूंजी को ध्यान में रखकर समृद्धि का एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो समाज की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है। भारत में जहां असमानताएं अधिक स्पष्ट और व्यापक हैं, यह दृष्टिकोण उन नीतियों का मार्गदर्शन कर सकता है, जो वंचित समुदायों को सशक्त बनाएंगी; संसाधनों का न्यायपूर्ण प्रबंधन सुनिश्चित करेंगी और दीर्घकालिक संधारणीयता को बढ़ावा देंगी।
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- समावेशी संपदा
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