संख्याएँ और उनकी कहानियाँ:
संख्याएँ प्रगति, दर्द और शक्ति की कहानियाँ प्रकट करती हैं, लेकिन अक्सर वे हाशिए पर पड़े समूहों को अनदेखा कर देती हैं। भारत अगली जनगणना के लिए तैयार हो रहा है, ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या महिलाओं की गणना उनकी विविधता और वास्तविकताओं को दर्शाने वाले तरीके से की जाएगी या वे सांख्यिकीय रूप से अदृश्य और राजनीतिक रूप से बहिष्कृत रहेंगी।
महिला आरक्षण विधेयक
सितंबर 2023 में महिला आरक्षण विधेयक, संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम का पारित होना महत्वपूर्ण कदम था। हालांकि, जनगणना से जुड़ी परिसीमन प्रक्रिया के कारण इसके क्रियान्वयन में देरी हो रही है। यह जनगणना न केवल यह निर्धारित करेगी कि किसे गिना जाएगा बल्कि यह भी तय करेगी कि दशकों तक किसे राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा।
समावेशी लोकतंत्र के लिए एक अवसर के रूप में जनगणना
आगामी जनगणना केवल एक सांख्यिकीय कार्य नहीं है; यह अधिक समावेशी लोकतंत्र बनाने का अवसर है। इसे जेंडर के प्रति संवेदनशील तरीके से डिजाइन और लागू किया जाना चाहिए।
- राजनीति में महिलाओं को लैंगिक भेदभाव, वित्त की कमी, मीडिया की उपेक्षा और हिंसा जैसी संरचनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- हाशिए पर रहने वाली महिलाओं (दलित, आदिवासी, मुस्लिम, समलैंगिक, दिव्यांग) को गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- इन प्रणालीगत बाधाओं को दूर किए बिना केवल सीटें आरक्षित करने से एक्सक्लूशन की समस्या समाप्त नहीं होगी।
जेंडर के प्रति संवेदनशील जनगणना की आवश्यकता
- जनगणना में महिलाओं की विविधता को ध्यान में रखते हुए लिंग-आधारित आंकड़े एकत्र किए जाने चाहिए।
- प्रश्नावली में महिलाओं की जटिल वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए तथा साक्षरता, रोजगार, भूमि स्वामित्व, योग्यता, धर्म और जाति के आधार पर आंकड़ों को सारणीबद्ध किया जाना चाहिए।
- क्षेत्रीय जातिगत भिन्नताओं पर विचार करते हुए जेंडर और जाति संबंधी एक्सपर्ट्स के साथ साझेदारी की जानी चाहिए।
- सार्वजनिक डेटा पोर्टलों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि वे नागरिक समाज को जेंडर संबंधी डेटा का विश्लेषण करने में सक्षम बनाएं।
- गणनाकर्ताओं को जेंडर के प्रति संवेदनशीलता के संबंध में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
2011 की जनगणना और भविष्य में सुधार
2011 की जनगणना में "अन्य" जेंडर श्रेणी को शामिल करना एक मील का पत्थर था। हालांकि, इसे ठीक से क्रियान्वित नहीं किया गया, जिसके कारण ट्रांस और नॉन-बाइनरी व्यक्तियों की रिपोर्टिंग कम हुई। अगली जनगणना में इन मुद्दों को सुधारना होगा।
लिंग-संवेदनशील जनगणना के विरुद्ध तर्क
- कुछ लोग तर्क देते हैं कि इसमें संसाधन की बहुत अधिक आवश्यकता है, लेकिन इसके बिना महिलाओं की स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी।
- महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व के लिए जेंडर के प्रति संवेदनशील जनगणना महत्वपूर्ण है, जिससे अभिजात वर्ग के प्रभुत्व को रोका जा सके।
जनगणना के बाद की कार्रवाइयां
- यह निगरानी की जानी चाहिए कि क्या आरक्षित सीटें भारत की महिला विविधता को प्रतिबिंबित करती हैं।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि राजनीतिक दल आरक्षित सीटों के लिए साक्ष्य-आधारित चयन प्रक्रिया का उपयोग करें।
- अभिजात वर्ग के सह-चुनाव को रोकने के लिए पंचायत से संसद तक आवश्यक उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
महत्वपूर्ण प्रश्न
- यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि सीट आवंटन में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) की महिलाओं की अनदेखी न की जाए?
- सभी निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों से महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए पार्टियों को कैसे जवाबदेह बनाया जाए?
जेंडर के आधार पर विभाजित डेटा का महत्व
इस तरह के डेटा से उन बातों को सामने लाया जाता है, जिन्हें अक्सर अनदेखा किया जाता है। इससे जागरूकता बढ़ती है और राजनीतिक दबाव भी बढ़ता है। जेंडर के प्रति संवेदनशील न होने वाली जनगणना अधूरी और अन्यायपूर्ण होती है, जिससे राजनीतिक प्रतिनिधित्व विकृत होता है।
लेखक का दृष्टिकोण
लोकतंत्र में हर व्यक्ति का महत्व है। आधी आबादी और क्षमता के रूप में महिलाओं की सही गणना की जानी चाहिए। फेम फर्स्ट फाउंडेशन की संस्थापक लेखिका ने देश के भविष्य को आकार देने में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया है।