आपातकाल की स्मृति: 50वीं वर्षगांठ के अवलोकन
प्रधान मंत्री के नेतृत्व में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ को गंभीर चिंतन और श्रद्धांजलि के साथ मनाया।
मुख्य अवलोकन और वक्तव्य
- श्रद्धांजलि एवं संकल्प:
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आपातकाल के पीड़ितों के सम्मान में दो मिनट का मौन रखा। वर्तमान सरकार ने इसे 'संविधान हत्या दिवस' कहा है। - लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता:
प्रधान मंत्री ने लोकतांत्रिक अधिकारों के निलंबन और संविधान को याद रखने के महत्व पर बल दिया तथा संवैधानिक सिद्धांतों को मजबूत करने की शपथ ली।
आपातकाल पर प्रभाव और विचार
- लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन:
आपातकाल की अवधि को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक माना जाता है। इसमें मौलिक अधिकारों का निलंबन, प्रेस की स्वतंत्रता का दमन और राजनीतिक नेताओं और नागरिकों को बड़े पैमाने पर कारावास में डालना शामिल था। - संवैधानिक संशोधन:
आपातकाल के दौरान लागू किए गए 42वें संशोधन ने संविधान में बड़े बदलाव किए, जिन्हें बाद में आने वाली सरकार ने पलट दिया। इस संशोधन को उस समय की तत्कालीन सरकार की ज्यादतियों का उदाहरण माना जाता है। - सामाजिक प्रभाव:
आपातकाल ने गरीबों, हाशिए पर स्थित लोगों और कमजोर वर्गों को बुरी तरह प्रभावित किया तथा उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई गई।
विरासत और सामूहिक संघर्ष
- प्रतिरोध की पहचान:
प्रधान मंत्री ने विभिन्न पृष्ठभूमियों और विचारधाराओं के उन व्यक्तियों को नमन किया, जो आपातकाल के दौरान भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने की रक्षा के लिए एकजुट हुए। - लोकतंत्र की बहाली:
इन व्यक्तियों के सामूहिक प्रयासों से लोकतंत्र की बहाली हुई और तत्कालीन सरकार की चुनावी हार हुई।