ग्रेट निकोबार इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (GNIP) की पर्यावरणीय चिंताएं
72,000 करोड़ रुपये की लागत वाली ग्रेट निकोबार इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना (GNIP) ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र पर इसके संभावित प्रभाव के कारण पर्यावरणीय चिंताएं पैदा कर दी हैं।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) निष्कर्ष
- ऐतिहासिक आंकड़ों और वैज्ञानिक चेतावनियों के बावजूद EIA अध्ययन भूकंप के खतरे को कम करके आंकता है।
- आईआईटी-कानपुर के 2019 के एक अध्ययन से पता चलता है कि मेगा-भूकंप (9 या अधिक की तीव्रता) के लिए "वापसी अवधि" 420-750 वर्ष है और बड़े-तीव्रता वाले भूकंप (7.5 से अधिक) के लिए 80-120 वर्ष है।
- दक्षिण अंडमान के बड़ाबालू समुद्र तट के तलछट से पिछले 8,000 वर्षों में सुनामी की कम से कम सात बड़ी घटनाओं के साक्ष्य मिले हैं।
वैज्ञानिकों की चिंताएँ
- वैज्ञानिक इस क्षेत्र की जटिल भूवैज्ञानिक रूपरेखा के कारण स्थान-विशिष्ट अध्ययन की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- इस क्षेत्र की भू-गतिकी प्रकृति अप्रत्याशित भूकंपों के प्रति संवेदनशीलता का संकेत देती है।
परियोजना की विशेषताएं और विवाद
- GNIP में एक ट्रांस-शिपमेंट बंदरगाह, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, टाउनशिप का विकास और एक 450 मेगावोल्ट-एम्पीयर (MVA) गैस और सौर-आधारित बिजली संयंत्र शामिल हैं।
- जैवविविधता की हानि, वनों की कटाई तथा स्थानीय जनजातियों पर पड़ने वाले प्रभाव की चिंताओं के कारण राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इसकी समीक्षा की है।
क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि
यह क्षेत्र भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, क्योंकि भारतीय प्लेट अंडमान ट्रेंच के साथ बर्मी माइक्रोप्लेट के नीचे सरक रही है। इसे भूकंपीय दृष्टि से पाँचवीं और सबसे उच्चतम श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
ऐतिहासिक संदर्भ
2004 में हिंद महासागर में आए 9.2 तीव्रता वाले सुनामी भूकंप ने द्वीपों को बुरी तरह प्रभावित किया था। इसके परिणामस्वरूप जान-माल की भारी हानि हुई थी और भूकंपीय घटनाओं के प्रति इस क्षेत्र की संवेदनशीलता उजागर हुई थी।