सर्वोच्च न्यायालय और भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के महत्व पर ज़ोर देते हुए इसे भारत के चुनाव आयोग (ECI) के "संवैधानिक आदेश" का हिस्सा बताया है। चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने की योजना बना रहा है, लेकिन बिहार में इस प्रक्रिया के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के अगले निर्देशों के लिए 28 जुलाई तक इंतज़ार कर सकता है।
SIR से जुड़े विवाद
- बिहार में SIR प्रक्रिया में बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) द्वारा विदेशी मूल के व्यक्तियों, विशेष रूप से नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोगों की पहचान करना शामिल है, जिससे नागरिकता निर्धारित करने में BLO की योग्यता को लेकर चिंताएं पैदा हो रही हैं।
- "कोई भी मतदाता पीछे न छूटे" भारत निर्वाचन आयोग का ऐतिहासिक आदर्श वाक्य रहा है, लेकिन मतदाता पंजीकरण की जिम्मेदारी राज्य से नागरिकों पर स्थानांतरित करने पर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ
- बिहार अक्टूबर-नवंबर में चुनाव की तैयारी कर रहा है तथा अवैध आव्रजन की समस्या से जूझ रहे असम और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं।
- SIR की समय-सीमा की आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि यह बिहार के विधानसभा चुनावों के बहुत करीब है, जिससे दस्तावेज़ सत्यापन संबंधी चुनौतियों के कारण मताधिकार से वंचित होने का खतरा है।
दस्तावेज़ सत्यापन पर चिंताएँ
- SIR आदेश के अनुसार उचित दस्तावेजों के अभाव के कारण लाखों लोग इससे वंचित रह सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने हाशिए पर जाने से रोकने के लिए आधार, मतदाता फोटो पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को शामिल करने का सुझाव दिया है।
- बिहार में साक्षरता की गंभीर चुनौतियां हैं, जहां 40% महिलाएं कभी स्कूल नहीं जातीं तथा 29% पुरुष फॉर्म पढ़ने में असमर्थ हैं। इससे मतदाता पंजीकरण जटिल हो जाता है।
बिहार के मतदाताओं पर प्रभाव
- ECI का दावा है कि SIR के तहत 80% से अधिक मतदाता कवर हो चुके हैं, लेकिन उन प्रवासियों को शामिल करने के बारे में चिंता बनी हुई है, जो आमतौर पर चुनावों के दौरान वोट देने के लिए वापस आते हैं।
- राज्य में प्रवासी आबादी काफी अधिक है तथा आधे से अधिक घरों में एक कमाने वाला सदस्य प्रवासी है।
निष्कर्ष
भारत के समावेशी लोकतंत्र की भावना को बनाए रखने के लिए भारत के चुनाव आयोग से आग्रह किया जाता है कि वह व्यापक और निष्पक्ष मतदाता सूची संशोधन सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करे।