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Polity Class Hindi

पूर्व की कक्षा में पढ़ाए गए अंशों पर संक्षिप्त चर्चा तथा छत्रों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर  (1:00:27 PM)

अनुच्छेद 19(1)(g): पेशा का अधिकार     (1:22:25 PM)

  • नागरिकों को विधिक पेशा अपनाने का अधिकार 
  • योग्यता तथा अहर्त्ता  की शर्तों के साथ राज्य द्वारा आवश्यक प्रतिबंध लगाया जा सकता है। 
  • राज्य द्वारा राष्ट्र हित में किसी भी पेशा पर एकाधिकार आरोपित किया जा सकता है। 
  • 1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने हसमातुल्लाह बनाम मध्य प्रदेश के वाद में सर्वोच्च न्यायालय  ने निर्णय दिया कि 16 वर्ष से अधिक आयु के साँढ़ वर्ग के जानवरों की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध  लगाना संवैधानिक नहीं होगा। 
  • अमरजीत सिंह सिंधु बनाम पंजाब राज्य 2016 के वाद में सर्वोच्च  न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि शराब के व्यापार पर राज्य द्वारा पूर्ण प्रतिबंध आरोपित किया जा सकता है। 

अनुच्छेद 19(2): युक्तियुक्त निर्बंधन  (1:51:20 PM)

इस अनुच्छेद के तहत निम्नलिखित आधारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है:-

  • राज्य की संप्रभुता एवं अखंडता 
  • राज्य की सुरक्षा 
  • विदेशी राजों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध  
  • लोक व्यवस्था 
  • न्यापालिका की अवमानना 
  • नैतिकता या शालीनता 
  • मानहानि 
  • अपराध के लिए उकसाना 
  • प्रतिबंध की युक्तियुक्तता का निर्धारण या उसकी जांच उद्देश्यात्मकता एवं प्रक्रियात्मक वैधता(विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया ) के तहत की जाएगी और इसके निर्धारण में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ नीति-निर्देशक तत्वों एवं मौलिक कर्तव्यों को भी ध्यान में रखा जाएगा। 
  • विधायिका द्वारा बनाई गई ऐसी किसी भी विधि की जांच व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा सामाजिक हित के बीच संतुलन बनए रखने के उद्देश्य  से की जा सकती है। 

न्यायपालिका द्वारा युक्तियुक्त निर्बंधन का निर्धारण निम्नलिखित तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है:-

  • अधिकार की वह प्रकृति, जिसे प्रतिबंधित किया जा रहा हो। 
  • प्रतिबंध का उद्देश्य 
  • अपराध और प्रतिबंध के बीच अनुपात 
  • प्रतिबंध लगाने का समय 

नोट:- न्यायपालिका द्वारा युक्तियुक्त निर्धारण की जांच विधि की वैधानिकता के संदर्भ में नहीं की जाएगी, बल्कि उस विधि के माध्यम से आरोपित होने वाले प्रतिबंधों की जांच की जाएगी। 

 राजद्रोह से संबंधित तथ्य (2:31:08 PM):- 

  • सामान्य तौर पर राजद्रोह और देशद्रोह को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है, परंतु राजद्रोह का संबंध भारतीय दंड संहिता की धारा 124(A) से है; जबकि देशद्रोह का संबंध आईपीसी की धारा 121 से| 
  • राजद्रोह के तहत जब कोई व्यक्ति सरकार विरोधी वक्तव्य देता  है या संविधान का अपमान या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है, लोगों को भड़काता हो और इससे देश भर में बड़े पैमाने पर विद्रोह, दंगा या हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है या उसकी संभावना हो जाती है, तो वह राजद्रोह माना जाएगा। 
  • वर्तमान समय में इसके लिए न्यूनतम 3 वर्ष की सजा और अधिकतम उम्र कैद की सजा दी जा सकती है । 
  • इसके अलावा जुर्माना भी आरोपित किया जा सकता है और पासपोर्ट भी रद्द किया जा सकता है। 
  • राजद्रोह का दोष सिद्ध होने पर व्यक्ति किसी भी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है। आईपीसी  की धारा 121 के तहत देशद्रोह से संबंधित प्रावधान है और यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होता है या देश के खिलाफ युद्ध जैसे हालत पैदा करता है या लोगों को देश के खिलाफ युद्ध करने के लिए प्रेरित करता है, तो उसे देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाएगा और इसके लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है। 

नोट- आईपीसी की धारा 121 A तथा 122 भी देशद्रोह से संबंधित हैं। 

आईपीसी की धारा 124 A से संबंधित तथ्य (2:41:16 PM):-

  • 17 वीं शताब्दी में इस अवधारणा का उदय ब्रिटेन में 
  • 1837 में थॉमस मैकॉले के द्वारा इसका प्रारूप तैयार हुआ और 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किए गए संशोधन के माध्यम से धारा 124 A को आईपीसी में शामिल किया गया। 
  • किसी भी व्यक्ति द्वारा कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित, संकेत या दृष्टिगत प्रतिनिधित्व या अन्य तरीकों से घृणा अवमानना या उत्तेजना पैदा करने की कोशिश की जाती हो, तो ऐसे प्रयत्न को राजद्रोह माना जाएगा(ऐसे विद्रह में वैमनस्य एवं शत्रुता की भावनाएं शामिल होना आवश्यक है)। 

केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य वाद, 1962 (2:45:56 PM):-

  • सर्वोच्च न्यायालय ने जहां एक तरफ धारा 124 A को अनुच्छेद 19(2 ) के तहत वैध ठहराया, वहीं दूसरी तरफ इसके प्रयोग के लिए निम्नलिखित निर्देश भी जारी किए:-
  • सरकार के विरुद्ध द्रोह की भावना का होना 
  • अव्यवस्था, हिंसा या बड़ी मात्रा में बलवा का माहौल उत्पन्न करने की मंशा 
  • उपर्युक्त निर्देशों के साथ न्यायायपालिका ने स्पष्ट किया कि सरकार का विरोध हमेशा राजद्रोह नहीं माना जा सकता

नोट:-

  • संविधान सभा के सदस्य के एम मुंशी ने संविधान के प्रारूप में से राजद्रोह शब्द को शामिल न करने का समर्थन किया और संशोधन के माध्यम से संविधान सभा द्वारा उसे हटाया गया।
  • 1951 में प्रथम संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 19(1)a में दिए अधिकारों एवं स्वतंत्रता को सीमित करने के मकसद से अनुच्छेद 19 (2) लाया गया, ताकि युक्तियुक्त निर्बंधन को आरोपित किया जा सके। 
  • 1973 के सीआरपीसी के तहत राजद्रोह के अपराध को गंभीर अपराध की श्रेणी में रख दिया गया। (इसके पहले इसे कम गंभीर अपराध माना जाता था)

नोट:-

  • नेशनल क्राईम  रेकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2016-19 के बीच इस धारा के तहत गिरफ्तार लोगों की संख्या में 160% की वृद्धि हुई है, परंतु इसी दौरान दोष सिद्धि की दर लगभग 30% रही है। 
  • हाल के आंकड़ों के अनुसार,  इस धारा के तहत 13 हजार से अधिक  व्यक्ति जेल में हैं। 
  • मार्च 2022 में न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने अपना मत दिया कि सरकार के विरुद्ध दिया गया वक्तव्य राजद्रोह नहीं हो सकता| 
  • राजद्रोह के बढ़ते मामले और उसके दुरुपयोग के आधार पर जुलाई 2021 में एस जी बॉम्बडेकरे ने याचिका दायर की और मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा के उपयोग को निलंबित कर दिया है।  

राजद्रोह के पक्ष में विचार (3:13:10 PM):-

  • राष्ट्रविरोधी तथा आतंकवाद विरोधी गतिविधयों को रोकने के लिए आवश्यक 
  • राज्य अथवा सरकार की स्थिरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक 
  • समानांतर सरकार चलाने वाले समूह या संगठनों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक 

विपक्ष में विचार (3:24:06 PM):-

  • औपनिवेशिक अवशेष 
  • अनुच्छेद 19(1 )a का उल्लंघन 
  • स्पष्ट परिभाषा का अभाव 
  • लोकतांत्रिक  मूल्यों का दमन 
  • संविधान सभा में इसके विरुद्ध मत 

वर्तमान समय में सर्वोच्च न्यायालय के लिए केदारनाथ केस में  तीन अलग-अलग मुद्दों को ध्यान में रखते हुए तर्कसम्मत निर्णय की अपेक्षा है   ( 3:25:26 PM) :-      

  • 1973 के बाद अपराध की प्रकृति में  बदलाव 
  • अनुच्छेद  19(1 )a की व्याख्या 
  • सरकार द्वारा दुरुपयोग 

नोट:- डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ नें आलोचकोंं, पत्रकारों, सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं तथा नागरिकों के द्वारा कोविड पूर्व तथा कोविड पश्चात सरकार की खामियों या नाकामियों को जनता के सामने लाने पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने पर अपनी चिंता व्यक्त की है। 

घृणास्पद वक्तव्य संबंधी मुद्दा (3:29:35 PM):-

  • घृणा एक भावना है और घृणास्पद वक्तव्य एक  अपराध(यदि ऐसा वक्तव्य धर्म, लिंग,रंग, मूल, वंश या शारीरिक अयोग्यता के आधार पर अपमानित करने उद्देश्य से दिया गया हो)।  
  • बोलने का अधिकार स्वतंत्रता का सार है और यह अनुच्छेद 19 के दायरे में आता है, परंतु यह अनिवार्य तौर पर उत्तरदायित्वपूर्ण एवं कर्तव्य बोधक तत्वों के साथ होना चाहिए। 
  • घृणास्पद  वक्तव्य की न तो संविधान में और न ही किसी विशिष्ट विधि में कोई परिभाषा है, परंतु आइपीसी की धाराओं में इसका अवश्य उल्लेख है:-धारा 124 A, 153 A, 295 A, 298 , 505 
  • इनके अलावा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8, 123 और 125 में भी घृणास्पद वक्तव्य  को प्रतिबंधित करने से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। 
  • सीआरपीसी की धारा 95 और धार्मिक संस्थान दुरुपयोग नियंत्रण अधिनियम 1988 के तहत भी घृणास्पद वक्तव्य को प्रतिबंधित किया गया है। 
  • विधि आयोग ने वर्ष 2017 में अपने 267 वें प्रतिवेदन में घृणास्पद वक्तव्य की व्याख्या करते हुए यही स्पष्ट किया कि लिंग, यौन उन्मुखता, धार्मिक विश्वास, रंग या मूल वंश  इत्यादि के आधार पर यदि घृणा को उकसाया जाता हो, तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा। 
  • विगत कुछ वर्षों  से घृणास्पद वक्तव्य की संख्या में वृद्धि हुई है और आईपीसी की धारा 153 A तथा 295 A के तहत घृणास्पद अपराध की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है। 
  • 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि न्यापालिका घृणास्पद  वक्तव्य से संबंधित प्रावधानों,  विशेष तौर पर धारा 195 की व्याख्या  प्रगतिशील एवं परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के साथ करेगी, परंतु 2015-20 के बीच में ऐसे अपराधों और मुकदमों की संख्या में चार गुणा वृद्धि देखी गई है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि घृणास्पद वक्तव्य केवल व्यक्ति की गरिमा पर ही आघात नहीं है, बल्कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए भी खतरा है। 
  • फरवरी, 2023 में सकल हिन्दू समाज द्वारा प्रस्तावित सम्मेलन पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय लेते हुए पुलिस द्वारा उसकी वीडियो ग्राफी का आदेश दिया था। 
  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तरखंड के पुलिस प्रमुखोंं को निर्देश दिया है कि वे स्वयं की पहल से घृणास्पद वक्तव्य पर आपराधिक मामला दर्ज करें,  अन्यथा  न्यापालिका स्वयं निर्णय लेगी। 

सर्वोच्च न्यायालय के कुछ प्रमुख निर्णय ( 4:05:44 PM):-

  • 1927 में धारा 295 A को आईपीसी में शामिल किया गया। इसका संबंध रंगीला रसूल के केस से है, जिसमें लाहौर उच्च न्यायालय ने पैगंबर के निजी जीवन से समबंधित एक प्रकाशन पर अपना निर्णय  दिया था। 
  • प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ 2014 सर्वोच्च  न्यायालय  ने घृणास्पद वक्तव्य को न सिर्फ अनुच्छेद 19 से पृथक माना , बल्कि यह मत दिया कि बहुमत के द्वारा अल्पमत या सीमांत लोगों को उनकी सदस्यता के आधार पर अपमानित किया जाता हो, तो वह घृणास्पद वक्तव्य की श्रेणी में आएगा।  
  • सुकुमार बनाम तमिलनाडु राज्य वाद 2019:- सोशल मीडिया के मंच से दिया जाने वाला घृणास्पद वक्तव्य अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं कर सकता। 

TOPICS FOR THE NEXT CLASS:- मौलिक अधिकारों से संबंधित विभिन्न आयामों पर  चर्चा जारी.........