आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) डेटा के अनुसार पिछले छह वर्षों में महिला रोजगार संकेतकों में सुधार हुआ है | Current Affairs | Vision IAS
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PLFS केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय 2017-18 से आयोजित कर रहा है। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य देश में रोजगार और बेरोजगारी के मुख्य संकेतकों का अनुमान लगाना है।

महिला श्रम बल भागीदारी के मुख्य ट्रेंड:

  • वित्त वर्ष 2017-18 और 2023-24 के बीच महिला रोजगार के कई संकेतकों में वृद्धि दर्ज की गई है:
    • महिला कर्मी-जनसंख्या अनुपात (WPR) 2017-18 के 22% से दोगुना होकर 2023-24 में 40% हो गया; 
    • महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 2017-18 से 2023-24 के बीच लगभग 23% से बढ़कर लगभग 41% हो गई;
    • महिलाओं में बेरोजगारी दर 2017-18 में लगभग 5.6% थी, जो घटकर 2023-24 में 3.2% रह गई।
    • ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में 2017-18 और 2023-24 के बीच 23 प्रतिशत अंकों की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह 2017-18 की लगभग 25% से बढ़कर 2023-24 में लगभग 48% हो गई। 
  • महिला कार्यबल में स्नातकोत्तर और उससे उच्चतर डिग्रीधारी शिक्षित महिलाओं का अनुपात 2017-18 के 35 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 40 प्रतिशत हो गया।
  • स्वरोजगार में संलग्न महिलाओं की आय में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है।

PLFS में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख संकेतक

  • कामगार-जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio: WPR): इसे कुल आबादी में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate: LFPR): यह कुल जनसंख्या में श्रम बल में शामिल व्यक्तियों का प्रतिशत है। इसमें कार्यरत या काम की तलाश करने वाले या काम के लिए उपलब्ध व्यक्ति भी शामिल हैं।
  • बेरोजगारी दर ( Unemployment Rate: UR): यह कुल श्रम बल में बेरोजगार व्यक्तियों का प्रतिशत है।

महिला श्रम बल भागीदारी बढ़ाने में चुनौतियां:

  • सामाजिक चुनौतियां: महिलाओं पर बच्चों की देखभाल या अन्य घरेलू कार्य करने की जिम्मेदारियां होती हैं। साथ ही, उन पर जल्दी विवाह करने और संतान पैदा करने का दबाव भी होता है। इस वजह से अधिकतर महिलाएं रोजगार के बारे में नहीं सोच नहीं पाती हैं या बीच में ही रोजगार छोड़ देती हैं। 
  • आर्थिक चुनौतियां: महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर कम हैं। साथ ही, महिलाओं के रोजगार से घरेलू आय पर प्रभाव पड़ने को लेकर भी एक राय नहीं है;
  • शिक्षा: महिलाओं को उच्चतर शिक्षा जारी रखने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है;
  • अन्य चुनौतियां
    • महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा देने हेतु अनुकूल अवसंरचनाओं की कमी है, 
    • अधिकतर महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं, जहां रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं, और 
    • कार्यस्थल पर देखभाल और सहायता सुविधाओं की कमी है, आदि।

महिला श्रम बल भागीदारी दर को बढ़ावा देने वाली सरकारी पहलें:

  • कानूनी पहलें: 
    • मातृत्व हितलाभ लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 द्वारा सवेतन मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है।  
    • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत समान प्रकृति के रोजगार में लैंगिक भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया गया है, आदि।
  • मुख्य योजनाएं: कौशल भारत मिशन; स्टैंड अप इंडिया; राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
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