उद्यम पोर्टल के अनुसार, भारतीय MSME क्षेत्रक ने पिछले 15 माह में लगभग 10 करोड़ रोजगार पैदा किए हैं | Current Affairs | Vision IAS
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उद्यम पोर्टल की शुरुआत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) मंत्रालय ने की है। इसे उद्यमों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के रूप में पंजीकृत व वर्गीकृत करने के लिए शुरू किया गया है। 

MSME क्षेत्रक की स्थिति

  • पंजीकृत MSMEs में उच्च वृद्धि: इनकी संख्या अगस्त 2023 के 2.33 करोड़ से बढ़कर 5.49 करोड़ हो गई है। 
  • रोजगार में वृद्धि: MSME क्षेत्रक में रोजगार 13.15 करोड़ से बढ़कर 23.14 करोड़ हो गया है। इनमें से 5.23 करोड़ नौकरियां महिलाओं को मिली हैं।

MSME क्षेत्रक का महत्त्व

  • अर्थव्यवस्था: MSME क्षेत्रक भारत की GDP में लगभग 30% का योगदान देता है। भारत के कुल निर्यात में इस क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 46% है।
  • क्षेत्रीय विकास: यह क्षेत्रक आर्थिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण करता है और ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी क्षेत्रों में संतुलित विकास को बढ़ावा देता है।
  • विविधीकरण: यह अलग-अलग क्षेत्रकों में परिचालन करके एक ही उद्योग पर निर्भरता को कम करता है।
  • बड़े पैमाने के उद्योगों का समर्थन: MSMEs बड़े उद्योगों के लिए विशेष उत्पाद और सेवाएं प्रदान करते हैं। इससे बड़े उद्योगों के उत्पादन में मूल्यवृद्धि होती है।

MSME क्षेत्रक को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • जमानत-मुक्त ऋण: MSMEs अब क्रेडिट गारंटी योजना के तहत 85% गारंटी कवरेज के साथ 50 करोड़ रुपये तक का ऋण प्राप्त कर सकते हैं। 
  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक के लिए वर्गीकरण में सुधार: इससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक के बीच के अंतर को दूर करने में मदद मिली है। साथ ही, इससे टर्नओवर का एक नया मानदंड लागू हुआ है।
  • सार्वजनिक खरीद नीति: इसके तहत केंद्रीय मंत्रालयों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे अपनी कुल वार्षिक खरीद का 25% हिस्सा सूक्ष्म और लघु उद्यमों से ही खरीदें।
  • पी.एम. विश्वकर्मा योजना: इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक कर्मकारों और शिल्पकारों को सहायता प्रदान करना तथा उन्हें घरेलू एवं वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करना है।

भारत में MSME क्षेत्रक के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियां हैं

  • औपचारिकीकरण और समावेशन का अभाव, 
  • किफायती ऋण और पूंजी तक सीमित पहुंच, 
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल उपकरणों तक पहुंच की कमी, 
  • अवसंरचनात्मक बाधाएं आदि। 
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