भूस्खलन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप चट्टान, मिट्टी, मलबा सहित ढलान-बनाने वाली सामग्रियां नीचे और बाहर की ओर संचलन करती हैं। भूस्खलन के लिए जिम्मेदार प्राथमिक कारक गुरुत्वाकर्षण होता है। यह ढलान के उस हिस्से पर कार्य करता है, जो संतुलन से बाहर होता है।
- भूस्खलन को आम तौर पर संचलन के प्रकार (स्लाइड, फ्लो, स्प्रेड, टॉपल या फॉल) और संचलन सामग्री के प्रकार (शैल, मलबा या मिट्टी) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

भूस्खलन के लिए जिम्मेदार कारण
- प्राकृतिक कारण: भूमिगत जल का दबाव, भूकंप, मूसलाधार, ज्वालामुखी उद्गार, भारी वर्षा, आदि।
- मानव जनित गतिविधियां: वनों की कटाई; निर्माण कार्य के दौरान मशीनरी के उपयोग या यातायात से कंपन, सुरंग निर्माण, आदि।
भारत में भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्र
- इसरो के ‘भारत के भूस्खलन एटलस’ के अनुसार, भारत भूस्खलन से सबसे अधिक खतरे वाले विश्व के शीर्ष चार देशों में शामिल है।
- देश के कुल भौगोलिक भूमि क्षेत्रफल का लगभग 12.6 प्रतिशत यानी 0.42 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भूस्खलन के प्रति सुभेद्य है (मानचित्र देखें)। इस क्षेत्र में बर्फ से ढके क्षेत्र शामिल नहीं हैं।
- भारत में जितनी भी भूस्खलन घटनाएं घटित होती हैं, उनमें से 66.5% उत्तर-पश्चिमी हिमालय में घटित होती हैं। इसके बाद पूर्वोत्तर हिमालय (18.8%) और पश्चिमी घाट (14.7%) में घटित होती हैं।
भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए शुरू की गई पहलें/ रणनीति
- राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति (2019): इसमें भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्र की मैपिंग, निगरानी और प्रारंभिक-चेतावनी प्रणाली की स्थापना आदि शामिल हैं।
- NDMA द्वारा भूस्खलन जोखिम शमन योजना (LRMS): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की इस योजना के अंतर्गत साइट विशिष्ट भूस्खलन शमन परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- राष्ट्रीय भूस्खलन-आशंकित मानचित्रण (NLSM): इसके तहत देश में भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्रों का जियो-डेटाबेस तैयार किया जाता है और इसे नियमित रूप से अपडेट किया जाता है।