‘ग्लेशियर संरक्षण पर उच्च स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में यूनेस्को और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के सहयोग से आयोजित किया गया।
ग्लेशियर क्यों महत्वपूर्ण हैं?
- ताजे जल के स्रोत: पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 3% ताज़ा जल है। इनमें से दो-तिहाई जल ग्लेशियरों में जमा है।
- नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक: उदाहरण के लिए- हिंदू कुश हिमालय (HKH) की लगभग 54,000 ग्लेशियरें, सिंधु नदी प्रणाली के जल प्रवाह में लगभग 40% का योगदान देती हैं।
- पृथ्वी की जलवायु का प्राकृतिक आर्काइव: इन ग्लेशियरों में पृथ्वी के पिछले 8 लाख वर्षों तक की जलवायु के रिकॉर्ड मौजूद हैं। इससे ग्लोबल वार्मिंग और कूलिंग चक्रों को समझने में मदद मिलती है।
- मानसून को प्रभावित करना: हिमालय के ग्लेशियर और हिंद महासागर के बीच तापमान में अंतर वास्तव में दक्षिण-पश्चिम मानसून की भारत की मुख्य भूमि में प्रवेश को प्रभावित करती है।
ग्लेशियरों के संरक्षण हेतु उठाए गए कदम
भारत में उठाए गए कदम:
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन इकोसिस्टम (NMSHE): यह भारत की “जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)” का एक प्रमुख मिशन है।
- क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र: यह केंद्र भारतीय हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों पर निगरानी रखने एवं इनका अध्ययन करने के लिए स्थापित किया गया है।
- आपदा से निपटने के लिए तैयारी: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के खतरे वाली जगहों की पहचान की गई है ताकि समय रहते कार्रवाई की जा सके।
वैश्विक स्तर पर उठाए गए कदम:
- यूनेस्को और WMO की पहल: वर्ष 2025 को “अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष” और 2025-2034 को “क्रायोस्फेरिक साइंसेज के लिए कार्रवाई का दशक” घोषित किया गया है।
- पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता: इस समझौते का मुख्य लक्ष्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास करना है।
- इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD): यह एक अंतर-सरकारी संस्था है। इसका उद्देश्य हिंदू कुश हिमालय को संरक्षित रखने के लिए प्रयास करना है।