पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन की व्यापक घटनाएं दर्ज की गई | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन की व्यापक घटनाएं दर्ज की गई

Posted 06 Oct 2025

1 min read

Article Summary

Article Summary

भारी बारिश के कारण हाल ही में पश्चिम बंगाल के हिमालयी जिलों में भूस्खलन हुआ है, जिससे टेक्टोनिक्स, मौसम और मानवीय गतिविधियों के कारण हिमालय की संवेदनशीलता उजागर हुई है। एनडीएमए जोखिम आकलन, पूर्व चेतावनी और तैयारियों पर ज़ोर देता है।

हाल ही में, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों में भारी बारिश के कारण कई जगह भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गई। 

भूस्खलन क्या है? 

  • परिभाषा: भूस्खलन गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में भारी मात्रा में चट्टान, मिट्टी या मलबे जैसी सामग्री का ढलान से नीचे की ओर खिसकना या गिरना है।
  • भूस्खलन के प्रति भारत की सुभेद्यता: इसरो के 2023 के 'लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया' के अनुसार, भारत का 12.6% भूभाग भूस्खलन के खतरे के प्रति सुभेद्य है।
    • इसमें से तीन-चौथाई से अधिक हिस्सा अकेले हिमालयी क्षेत्र में स्थित है।

हिमालयी क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अधिक सुभेद्य क्यों है? 

  • प्राकृतिक कारण:
    • विवर्तनिकी और भूविज्ञान: हिमालय एक युवा वलित पर्वत है। इसकी उत्पत्ति भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स के टकराने की वजह से हुई है। इसमें भ्रंश एवं दरारें हैं, जो इस क्षेत्र को स्वाभाविक रूप से अस्थिर बनाते हैं।  
    • वर्षा और चरम मौसमी घटनाएं: मानसूनी वर्षा के साथ-साथ बादल फटने तथा बर्फ पिघलने से मृदा संतृप्त हो जाती है। इससे ढलानों की स्थिरता कम हो जाती है।
      • जलवायु परिवर्तन ने चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति को और बढ़ा दिया है।
    • अन्य: भूकंपीय गतिविधि, खड़ी ढलानें, खराब जल निकासी और अचानक बाढ़ आदि मिलकर इस अस्थिरता को बढ़ाते हैं।
  • मानवजनित कारण:
    • अव्यवस्थित निर्माण: सड़कों की कटाई, सुरंग निर्माण आदि ढलानों को कमजोर करते हैं।
    • अन्य: खनन, शहरीकरण से होने वाले भूमि-उपयोग परिवर्तन, वनों की कटाई व वन भूमि का अतिक्रमण आदि प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करते हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा भूस्खलन प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देश

  • सुभेद्यता और जोखिम आकलन: भूस्खलन और हिमस्खलन के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों की पहचान एवं मानचित्रण करना जरूरी है।
  • बहु-जोखिम संकल्पना: विभिन्न स्तरों पर बहु-विपदा जोखिम आकलन तथा शमन और प्रतिक्रिया रणनीतियों में भूस्खलन संबंधी चिंताओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • अर्ली वार्निंग: उच्च जोखिम वाले भूस्खलनों के लिए रियल टाइम निगरानी और अर्ली वार्निंग प्रणालियां स्थापित करना आवश्यक है।
  • आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया: इसमें वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, स्थानीय अधिकारियों, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और अर्धसैनिक बलों को शामिल करना शामिल है।
  • अन्य: क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण; जन जागरूकता एवं शिक्षा; आपदा ज्ञान नेटवर्क; भूस्खलन जोखिम प्रबंधन के लिए एक वैधानिक ढांचा आदि।
  • Tags :
  • Himalayan region
  • ISRO’s 2023 Landslide Atlas of India.
  • Landslides Management Guidelines
  • National Disaster Management Authority (NDMA)
Watch News Today
Subscribe for Premium Features

Quick Start

Use our Quick Start guide to learn about everything this platform can do for you.
Get Started