अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि महासागरीय अम्लीकरण के ‘ग्रहीय सहन-सीमा’ को पार करने से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र गंभीर खतरे में पड़ गया है। महासागरीय अम्लीकरण वास्तव में लंबी अवधि में समुद्र के pH मान में कमी को कहते हैं। इसका मुख्य कारण महासागरों द्वारा वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का अवशोषण है।
- महासागरीय अम्लीकरण को “ग्लोबल वार्मिंग की जुड़वाँ बुराई” (Evil twin of global warming) और “एक अन्य कार्बन डाइऑक्साइड समस्या” कहा गया है।
महासागरीय अम्लीकरण की प्रक्रिया

- वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) समुद्र में घुल जाती है, जिससे जलीय कार्बन डाइऑक्साइड {CO2 (aq)} बनता है।
- यह कार्बन डाइऑक्साइड जल (H₂O) से अभिक्रिया करके कार्बोनिक अम्ल (H₂CO₃) बनाती है।
- इसके बाद यह कार्बोनिक अम्ल विघटित होकर बाइकार्बोनेट (HCO₃⁻) और हाइड्रोजन आयन (H⁺) बनाता है।
- हाइड्रोजन आयनों की वृद्धि महासागर को और अधिक अम्लीय बनाती है।
महासागरीय अम्लीकरण के कारण
- महासागर मानवीय गतिविधियों से उत्सर्जित लगभग 25% वार्षिक CO₂ को अवशोषित करते हैं।
- महासागरों में प्राकृतिक तरीके से CO₂ उत्सर्जन, जैसे- महासागरों में ज्वालामुखी उद्गार, महासागरीय धाराओं का परिसंचरण, महासागरीय तलछट का विखंडन, आदि।
महासागरीय अम्लीकरण का प्रभाव
- अम्लीय जल कैल्शियम कार्बोनेट से बनी संरचनाओं को तोड़कर घोल देता है या उन्हें गला देता है। इससे कोरल, शेलफिश, प्लैंकटन (प्लवक) जैसे जीव प्रभावित होते हैं। जाहिर है इससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है। इससे मात्स्यिकी गतिविधि और तटीय संरक्षण पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
- महासागरीय अम्लीकरण फाइटोप्लैंकटन को नुकसान पहुंचाता है, जिससे महासागर की उत्पादकता घटती है।
- महासागरीय अम्लीकरण फाइटोप्लैंकटन द्वारा डायमिथाइल सल्फाइड (DMS) के उत्पादन को प्रभावित करता है, जिससे बादलों के निर्माण पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
- समुद्री प्लवक द्वारा उत्पादित डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS), वायुमंडल में ऑक्सीकृत होकर सल्फ्यूरिक एसिड बनाता है, जिससे क्लाउड कंडेंसेशन न्यूक्लिई (CCN) का निर्माण होता है। ये CCN जल की बूंदों के लिए सीड का काम करते हैं, और अंततः बादल निर्माण में योगदान करते हैं।
ग्रहीय सहन-सीमाएं (Planetary Boundaries) क्या हैं?
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