वर्ष 2020 से 2024 के बीच स्टारलिंक के 523 उपग्रह नष्ट हो गए। गौरतलब है कि ये वर्ष सौर चक्र के चरम वर्ष थे।
- सौर चक्र लगभग 11 वर्षों का एक चक्र होता है। इस दौरान सूर्य की सतह पर विभिन्न गतिविधियां घटती-बढ़ती रहती हैं।
- यह चक्र सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, सोलर फ्लेयर्स, कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और “अंतरिक्ष के मौसम” को प्रभावित करता है।
- सूर्य की सतह पर होने वाले विस्फोटों के कारण उत्पन्न भू-चुंबकीय तूफान वायुमंडलीय खिंचाव को बढ़ा देते हैं। इस बढ़े हुए खिंचाव के कारण कई उपग्रह अपेक्षा से अधिक तेजी से पृथ्वी की ओर लौट आते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
- यही कारण है कि स्टारलिंक के कई उपग्रह गिर चुके हैं, जिससे वायुमंडलीय प्रदूषण और अंतरिक्ष मलबे की चिंता बढ़ गई है।
अंतरिक्ष मलबा और इसकी स्थिति
- अंतरिक्ष मलबा उन सभी मानव-निर्मित वस्तुओं को कहा जाता है जो अब निष्क्रिय हो चुकी हैं, लेकिन अभी भी पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रही हैं या वायुमंडल में पुनः प्रवेश कर रही हैं।
- ESA की स्पेस एनवायरमेंट रिपोर्ट 2025 के अनुसार, अंतरिक्ष में 1 से.मी. से बड़े आकार के मलबे की संख्या 1.2 मिलियन से अधिक है। इनका आकार इतना बड़ा होता है कि ये किसी विनाशकारी क्षति का कारण बन सकते हैं।
- मुख्य स्रोत:
- अंतरिक्ष मलबे का अधिकांश हिस्सा दो प्रमुख कारणों से उत्पन्न होता है:
- ऑन-ऑर्बिट ब्रेक-अप: जब कोई उपग्रह या रॉकेट का हिस्सा अपने आप पृथ्वी की कक्षा में फट जाता है।
- ऑन-ऑर्बिट टकराव: जब दो उपग्रह, या उपग्रह और मलबे का कोई अन्य टुकड़ा आपस में टकरा जाते हैं।
- अंतरिक्ष मलबे का अधिकांश हिस्सा दो प्रमुख कारणों से उत्पन्न होता है:
- संभावित परिणाम: यह उपग्रहों को नुकसान पहुंचा सकता है, संचार और नेविगेशन सिस्टम को बाधित कर सकता है, तथा अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।
- इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष मलबा केसलर सिंड्रोम की घटना को उत्पन्न कर सकता है। केसलर सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें अंतरिक्ष मलबा बार-बार आपस में टकराकर अधिक मलबा उत्पन्न करता है। इसकी वजह से कुछ कक्षाएं पूरी तरह से अनुपयोगी हो जाती हैं।
अंतरिक्ष मलबे से निपटने के लिए उठाए गए कदमवैश्विक स्तर पर
भारत में
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