सुप्रीम कोर्ट ने अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में यह निर्णय दिया कि कोई आरोपी व्यक्ति स्वेच्छा से नार्को-एनालिसिस टेस्ट करा सकता है, लेकिन यह केवल मुकदमे के दौरान उचित समय में ही संभव है।
- नार्को-एनालिसिस टेस्ट में व्यक्ति की मानसिक झिझक को कम करने के लिए प्रायः सोडियम पेंटोथल जैसे बर्बिट्यूरेट्स या अन्य रसायनों का उपयोग किया जाता है, जिससे व्यक्ति अधिक सहज होकर जानकारी और भावनाएं व्यक्त करने लगता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में पटना हाई कोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें पुलिस को एक लापता महिला से जुड़े दहेज उत्पीड़न के मामले में सभी आरोपियों की नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराने की अनुमति दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रमुख बिंदु
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पटना हाई कोर्ट द्वारा सभी आरोपियों का नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराने का आदेश देना गलत था। शीर्ष न्यायालय के अनुसार आरोपियों की सहमति के बिना नार्को एनालिसिस टेस्ट या अनैच्छिक टेस्ट (Involuntary tests) संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों का उल्लंघन करता है:
- अनुच्छेद 20(3): किसी अपराध के लिए अभियुक्त को स्वयं अपने विरुद्ध गवाह होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है। सुप्रीम कोर्ट ने सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में अपने पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नार्को टेस्ट जैसे परीक्षण इस अधिकार का हनन करते हैं।
- विनोभाई बनाम केरल राज्य और मनोज कुमार सोनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सहमति से कराए गए नार्को-एनालिसिस टेस्ट की रिपोर्ट को सीधे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। केवल इस रिपोर्ट के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि अन्य साक्ष्यों द्वारा उस रिपोर्ट की पुष्टि न की जाए।
- आरोपी अपने पक्ष में साक्ष्य पेश करने के लिए स्वेच्छा से नार्को एनालिसिस टेस्ट करा सकता है। हालांकि, इस मामले में उसे निरपेक्ष (पूर्ण) या “अपरिहार्य अधिकार" (Absolute/indefeasible right) प्राप्त नहीं है।