सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है।
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) क्या है?

- CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की एक प्रमुख परियोजना है। BRI को 2015 में शुरू किया गया था।
- यह सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा।
- CPEC के अंतर्गत अधिकांश परियोजनाएं ऊर्जा और अवसंरचना से संबंधित हैं।
- इसके तहत लगभग 3,000 किलोमीटर लंबी सड़कों, रेलवे लाइंस और पाइपलाइन्स का निर्माण किया जा रहा है। इसका उद्देश्य पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चीन के उत्तर-पश्चिमी शिंजियांग उइगर स्वायत्त प्रांत (Xinjiang Uyghur Autonomous Region: XUAR) के काशगर शहर तक तेल और गैस का परिवहन करना है।
अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने को लेकर भारत की चिंताएं
- भू-सामरिक चिंता: CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान गठजोड़ को मजबूत करता है, जिससे भारत की सुरक्षा, आर्थिक हितों और क्षेत्रीय प्रभाव पर सीधा असर पड़ सकता है। साथ ही, यह मध्य एशिया तक पहुंच के लिए भारत की चाबहार बंदरगाह और INSTC (अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा) जैसी पहलों की रणनीतिक उपयोगिता को भी कम कर सकता है।
- रणनीतिक घेराव: चीन पहले से ही भारत के चारों ओर 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' के तहत सामरिक बंदरगाहों जैसे कि हंबनटोटा (श्रीलंका), ग्वादर (पाकिस्तान) और चटगाँव (बांग्लादेश) में अपनी पकड़ बना चुका है। अब CPEC के अफगानिस्तान तक विस्तार से, चीन भारत के पश्चिमी मोर्चे पर और अधिक रणनीतिक बढ़त हासिल कर लेगा।
- पाकिस्तान-अफगानिस्तान-चीन धुरी का मजबूत होना: इससे पाकिस्तान का अफगानिस्तान पर प्रभाव और मजबूत हो सकता है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब भारत की तालिबान शासन के साथ भागीदारी सीमित है।
- यह अफगानिस्तान में भारत के विकासात्मक और मानवतावादी प्रभाव को कम कर सकता है। गौरतलब है कि भारत ने दो दशकों से सॉफ्ट पावर, अवसंरचना (जरांज-डेलाराम राजमार्ग) विकास और मानवीय सहायता के माध्यम से यह प्रभाव स्थापित किया है।
- सुरक्षा संबंधी चिंता: तालिबान शासन, यदि चीन की फंडिंग और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के सहयोग से काम करता है, तो वह भारत-विरोधी आतंकवाद (जैसे कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा) का केंद्र बन सकता है।
- आर्थिक चिंता: अफगानिस्तान में लिथियम और दुर्लभ खनिजों का भंडार है, जो हाई-टेक एवं हरित ऊर्जा उद्योगों के लिए अहम हैं। CPEC के माध्यम से चीन को इन संसाधनों तक आसान पहुंच मिलेगी, जिससे भारत इन खनिजों की प्राप्ति से रणनीतिक रूप से पिछड़ सकता है।
CPEC के प्रत्युत्तर में भारत द्वारा उठाए गए कदम
- चाबहार बंदरगाह का विकास: ईरान के शहीद बेहिश्ती टर्मिनल, चाबहार का विकास भारत को एक रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है। इसके जरिए वह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और CPEC कॉरिडोर को बायपास कर अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया तक पहुंच सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor: INSTC): यह भारत, रूस और ईरान द्वारा वर्ष 2000 में स्थापित एक मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क है। यह हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान होते हुए कैस्पियन सागर एवं रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के जरिये उत्तरी यूरोप से जोड़ता है।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor: IMEC): यह पहल वर्ष 2023 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य भारत, यूरोप और मध्य-पूर्व को UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल तथा यूरोपीय संघ के माध्यम से जोड़ना है।
- क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD): यह एक सुरक्षा मंच है जिसमें भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करते हुए नेविगेशन की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के बारे में
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निष्कर्ष
भारत चाबहार कनेक्टिविटी योजना को आगे बढ़ाना जारी रख सकता है और अफगान जनता के साथ जुड़ने के लिए कूटनीतिक अवसरों की तलाश कर सकता है। इसके साथ ही, यदि भारत पारदर्शी, समावेशी और संधारणीय क्षेत्रीय अवसंरचना का समर्थन करता है, तो वह दक्षिण एवं मध्य एशिया के एकीकृत भविष्य के निर्माण में एक रचनात्मक भूमिका निभा सकता है। ऐसा करके भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि विकास से सभी को लाभ मिले, और साथ ही अपने प्रमुख राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता न हो।