प्रधान मंत्री ने श्री नारायण गुरु और महात्मा गांधी के बीच ‘ऐतिहासिक संवाद के शताब्दी समारोह’ को संबोधित किया
Posted 25 Jun 2025
12 min read
श्री नारायण गुरु और महात्मा गांधी के बीच ऐतिहासिक संवाद या वार्ता 1925 में शिवगिरी मठ में हुई थी। वार्ता के दौरान उन्होंने वायकोम सत्याग्रह, अहिंसा, अस्पृश्यता उन्मूलन और दलितों के उत्थान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की थी।
महात्मा गांधी की अहिंसा
नारायण गुरु का करुणा-केंद्रित दृष्टिकोण
अहिंसा एक सिद्धांत के रूप में: गांधीजी ने उन सभी धार्मिक और राजनीतिक सिद्धांतों का खंडन किया जो सत्य और अहिंसा के आदर्शों के विपरीत थे।
गांधीजी के लिए, हिंसा सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति के विरोध या निषेध के समान थी, और अहिंसा ईश्वर तक पहुँचने का एक आदर्श मार्ग था।
हालांकि, गांधीजी ने ‘करुणा (Compassion)’ को अहिंसा का पालन करने वाले व्यक्तियों में निहित कई सद्गुणों में से एक माना।
श्री नारायण गुरु के अनुसार, करुणा एक अद्वैतवादी का मुख्य गुण है और इसमें अहिंसा सहित सभी नैतिक कर्तव्य और मूल्य समाहित हैं।
आत्मोपदेश शतकम में श्री नारायण गुरु लिखते हैं कि व्यक्ति अपने सुख के लिए जो कुछ भी करता है, उससे दूसरों को भी सुख मिलना चाहिए।
उनके अनुसार, अद्वैत दर्शन को मानने वाले का स्वभाव ही अहिंसा और करुणा से परिपूर्ण होता है।
वर्तमान समय में श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं की प्रासंगिकता
समानता और सामाजिक न्याय: उनके द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत “एक जाति, एक धर्म, और एक ईश्वर” सभी प्रकार की सामाजिक असमानताओं का विरोध करता है।
सामाजिक न्याय का आंदोलन: श्री नारायण गुरु ने वायकोम सत्याग्रह (1924-25) का समर्थन किया था। यह आंदोलन निम्न जाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए चलाया गया था।
धार्मिक सद्भाव: उन्होंने सभी धर्मों के प्रति सार्वभौमिक भाईचारे और सम्मान की भावना रखने पर बल दिया। उनका यह विचार वर्तमान में अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देता है और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए कट्टरता पर रोक लगाता है।
श्री नारायण गुरु के बारे में
जन्म और पृष्ठभूमि: उनका जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम के पास एझवा समुदाय (एक पिछड़ी जाति) में हुआ था।
व्यक्तित्व: वे एक संत, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया।
सामाजिक सुधार: उन्होंने श्री नारायण धर्म परिपालन (SNDP) योगम की स्थापना की। इस संगठन ने पिछड़े समुदायों को एकजुट करने और सामाजिक न्याय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख रचनाएं:आत्मोपदेश शतकम और निवृत्ति पंचकम, आध्यात्मिक चर्चाओं में आज भी प्रभावशाली मानी जाती हैं।