अहिंसा और सत्याग्रह (सत्य तक पहुंचने का दृढ़ संकल्प) पर गांधीजी के विचार:
- अहिंसा का विस्तार: उनका मानना था कि हिंसा किसी भी धर्म का सिद्धांत नहीं है, जबकि अधिकांश मामलों में अहिंसा सभी के लिए अनिवार्य है। केवल कुछ मामलों में ही हिंसा की अनुमति दी जा सकती है।
- उनका मानना था कि हिंसा करके कभी भी सत्य का प्रचार नहीं किया जा सकता।
- उन्होंने यंग इंडिया में लिखे अपने लेख ‘द डॉक्ट्रिन ऑफ द स्वॉर्ड’ में लिखा था कि:
- “मैं मानता हूं कि जहां कायरता और हिंसा के बीच चुनाव करना हो, वहां मैं हिंसा की सलाह दूंगा। मैं चाहूंगा कि भारत अपने सम्मान की रक्षा के लिए हथियारों का सहारा ले, बजाय इसके कि वह कायरतापूर्ण तरीके से अपने अपमान का असहाय गवाह बने या बना रहे।”
वर्तमान समय में सीमा-पार आतंकवाद के संदर्भ में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता
- ऑपरेशन सिंदूर: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया, सीमा-पार आतंकवाद का जवाब देने, उसे रोकने, उसे आगे न बढ़ने देने और उसका शमन करने के भारत के अधिकार पर आधारित थी।
- भारत के सुरक्षा सिद्धांत के तीन प्रमुख स्तंभ: इसमें भारत की शर्तों पर निर्णायक जवाबी कार्रवाई, परमाणु ब्लैकमेल के प्रति शून्य सहिष्णुता तथा आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई भेद नहीं करना शामिल है।
- सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल: राज्य प्रायोजित आतंकवाद की सच्चाई को सामने लाने तथा हिंसा के खिलाफ वैश्विक प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तक पहुंच बनाना।
निष्कर्ष
भारत ने हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम, परमाणु हथियारों का पहले उपयोग नहीं करने तथा वैश्विक शांति को बढ़ावा देने जैसे सिद्धांतों के माध्यम से गांधीजी के सिद्धांतों का अनुसरण किया है।