हाल ही में, संसद की कार्यवाही में जानबूझकर बाधा उत्पन्न करने की लोक सभा अध्यक्ष ने निंदा की है। संसद की कार्यवाही में बार-बार व्यवधान उत्पन्न करने के कारण संसद की उत्पादकता में तेजी से गिरावट आई है। 17वीं लोक सभा ने अपने निर्धारित समय का 88% काम किया और राज्य सभा ने 73% काम किया।
- 18वीं लोक सभा के शीतकालीन सत्र (2024) की उत्पादकता भी काफी कम रही। कामकाज की दृष्टि से इस सत्र के दौरान लोक सभा की उत्पादकता 54.5% और राज्य सभा में 40% रही।

संसदीय व्यवधान के लिए उत्तरदायी कारक:
- मूल कारक:
- व्यवधान, विवादास्पद राष्ट्रीय या क्षेत्रीय मुद्दों से उत्पन्न होते हैं, जो जनता का ध्यान आकर्षित करते हैं। उदाहरण के लिए, हिंडनबर्ग विवाद।
- विपक्ष का दिखावा: विपक्ष प्रस्तावों में देरी या अवरोध पैदा करने के लिए कार्यवाही में बाधा डालता है। इससे बहस से ध्यान हटकर प्रचार पर चला जाता है।
- दल-बदल विरोधी कानून सांसदों को पार्टी व्हिप का पालन करने के लिए बाध्य करता है। इससे मुद्दों पर सकारात्मक बहस पर प्रतिबंध लगता है एवं सांसदों पर व्यवधान संबंधी गतिविधियों में शामिल होने का दबाव पड़ता है।
- दल-बदल विरोधी कानून को 52वें संविधान संशोधन द्वारा 10वीं अनुसूची में जोड़ा गया था।
- संरचनात्मक कारक:
- राजनीतिक दलों की बढ़ती संख्या बहस के समय को कम कर देती है। इससे सदन में गैर-सूचीबद्ध मुद्दों के कारण व्यवधान पैदा होता है।
- संसदीय ढांचे में प्रश्नकाल जैसे विविध कार्यों के लिए निर्धारित समय-सीमा का अभाव है, जिसके कारण देरी होती है
संसदीय व्यवधान के प्रभाव
- सदन के कामकाज में व्यवधानों से महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस का समय कम हो जाता है। इससे संसद की सरकार को जवाबदेह ठहराने और कानून पारित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप जल्दबाजी में निर्णय लिए जाते हैं।
- लगातार व्यवधानों से संसद पर जनता का भरोसा कम होता है, क्योंकि सांसद मुख्य मुद्दों को सुलझाने की बजाय कार्यवाही को रोकने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- संसद के प्रत्येक सत्र में प्रत्येक मिनट में 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। अकेले 2021 के गतिरोध से करदाताओं को 133 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।