दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) (IBC) विधेयक, 2025 को संसद की प्रवर समिति को भेजा गया | Current Affairs | Vision IAS
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दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) (IBC) विधेयक, 2025 के उद्देश्य:

  • दिवाला (Insolvency) और शोधन अक्षमता (Bankruptcy) से संबंधित मामलों के निपटान में विलंब को कम करना; 
  • सभी हितधारकों के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना; तथा 
  • दिवाला के समाधान के लिए वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों का पालन करने वाले नए प्रावधानों को लागू करना।

विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर 

  • समाधान में तेजी लाना और विलंब को कम करना
  • NCLT की अनिवार्य समय-सीमा: राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) के लिए 14 दिनों के भीतर दिवाला संबंधी मामले को स्वीकार करने और 30 दिनों के भीतर समाधान योजना को मंजूरी देना अनिवार्य किया गया है।
  • कोर्ट से बाहर ऋणदाता द्वारा सुझाया गया समाधान: यह कारोबार में कम-से-कम व्यवधान के साथ तीव्र एवं अधिक लागत प्रभावी दिवाला समाधान की सुविधा प्रदान करता है। साथ ही, इससे न्यायपालिका पर बोझ को कम करने में भी सहायता मिलती है।
  • अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना और हितधारकों के हितों की रक्षा करना
    • कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) को लागू करना: NCLT असाधारण मामलों में एक बार CIRP को लागू कर सकता है। यह किसी समाधान योजना के स्वीकृत न होने या उसे अस्वीकार कर देने पर ऋणदाताओं की समिति (CoC) के अनुरोध पर किया जा सकता है।
  • गवर्नेंस और अनुपालन को बढ़ाना
    • ग्रुप इनसॉल्वेंसी फ्रेमवर्क: इस विधेयक में "वोलंटरी ग्रुप इनसॉल्वेंसी फ्रेमवर्क" को प्रस्तुत किया गया है। यह घरेलू कॉर्पोरेट समूह के भीतर संकटग्रस्त कंपनियों के संयुक्त समाधान की सुविधा प्रदान करता है। यह कदम कॉर्पोरेट समूह और उनकी कंपनियों के मध्य परस्पर संबद्ध को ध्यान में रखकर उठाया गया है।
    • सीमा-पार दिवाला समाधान फ्रेमवर्क: यह सीमा-पार या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिवाला समाधान के लिए एक संरचना का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियों के अनुपालन के साथ ऋणदाताओं को संकटग्रस्त कंपनियों की विदेशी परिसंपत्तियों तक आसान पहुंच मिल सकेगी।
    • क्लीन स्लेट सिद्धांत को मजबूत करना: यह विधेयक स्पष्ट रूप से "क्लीन-स्लेट सिद्धांत" को मजबूत करता है। इस सिद्धांत में कहा गया है कि एक बार समाधान योजना स्वीकृत हो जाने पर, कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ सभी दावे समाप्त हो जाते हैं, जब तक कि समाधान योजना में अलग से कुछ और न लिखा गया हो।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के बारे में

  • यह भारत में सभी संस्थाओं (कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दोनों) के दिवाला समाधान के लिए एक व्यापक कानून है।
  • यह बाजार की खामियों और सूचना संबंधी कमियों को दूर करती है। इससे कॉर्पोरेट दिवाला समाधान व्यवस्था के माध्यम से वाणिज्यिक संस्थाओं एवं उद्यमियों को ऋण दबावग्रस्त कंपनी या कारोबार को बंद करने की स्वतंत्रता" मिलती है।
  • दिवाला समाधान के लिए "डेब्टर इन पॉसेशन" दृष्टिकोण के स्थान पर "क्रेडिटर इन कंट्रोल” व्यवस्था को अपनाया गया है।
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