यह विधेयक भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 के स्थान पर लाया जा रहा है। इसका उद्देश्य भारत में पत्तनों से संबंधित कानूनों को समेकित करना है।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- राज्य समुद्रीय विकास परिषद की स्थापना: इसकी स्थापना केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होंगे।
- राज्य समुद्री बोर्ड: इन्हें राज्य सरकारों द्वारा गठित किया जाएगा। इनकी जिम्मेदारी महापत्तनों से भिन्न पत्तनों का प्रभावी प्रशासन और प्रबंधन करना होगा।
- विवाद समाधान: राज्य सरकारों को विवाद समाधान समितियां (DRCs) गठित करने का अधिकार दिया गया है। ये महापत्तनों से भिन्न पत्तनों से जुड़े विवादों का निपटान करेंगी। इन समितियों के निर्णय के खिलाफ संबंधित हाई कोर्ट में अपील की जा सकेगी।
- समितियों के अंतर्गत आने वाले मामलों पर किसी भी सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
- पत्तन प्रशुल्क: पत्तनों के लिए यह प्रशुल्क कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पत्तनों के लिए गठित बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स या महापत्तन प्राधिकरण बोर्ड द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
- महापत्तनों से भिन्न पत्तनों के मामले में यह प्रशुल्क राज्य समुद्री बोर्डों द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
- नये पत्तनों की अधिसूचना और पत्तन की सीमाओं में परिवर्तन: यह कार्य केंद्र सरकार द्वारा संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श से किया जाएगा।
- मेगा पोर्ट: यह विधेयक राज्य सरकार के परामर्श से केंद्र सरकार को एक या एक से अधिक पत्तन/ पत्तनों को मेगा पोर्ट के रूप में वर्गीकृत करने के लिए मानदंड निर्धारित करने का अधिकार देता है।
- पर्यावरण एवं सुरक्षा संबंधी अनुपालन: यह जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (MARPOL) और ब्लास्ट वाटर मैनेजमेंट कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
भारत में पत्तनों के बारे में
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