MNRE ने अपनी पवन टरबाइन अनुमोदन प्रणाली को अपडेट किया है। साथ ही, मॉडल्स और विनिर्माताओं की संशोधित सूची (RLMM) का नाम बदलकर मॉडल्स और विनिर्माताओं की अनुमोदित सूची (विंड) या ALMM (विंड) कर दिया है।
- RLMM 2018 की एक व्यवस्था थी। इसका उद्देश्य देश में लगाए जाने वाले पवन टरबाइनों की गुणवत्ता और भरोसेमंद संचालन सुनिश्चित करना था।
ALMM (विंड) की मुख्य विशेषताएं
- घरेलू आपूर्ति श्रृंखला: ब्लेड्स टावर, गियरबॉक्स, जनरेटर, विशेष बेयरिंग जैसे प्रमुख पुर्जों की खरीद केवल स्वीकृत भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से करना अनिवार्य किया गया है।
- डेटा स्थानीयकरण: सभी ऑपरेशनल डेटा भारत के भीतर ही संग्रहित किए जाएंगे। परिचालन नियंत्रण केंद्र भी भारत में ही होंगे।
- अनुसंधान एवं विकास केंद्र: विनिर्माता कंपनियों को एक साल के भीतर ऐसे केंद्र स्थापित करने होंगे, जो भारतीय परिस्थितियों के अनुसार टरबाइन डिजाइन करें।
- गुणवत्ता मानक: सितंबर 2026 से सभी पुर्जों के लिए BIS प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) अनिवार्य होगा।
- छूट:
- पहले से बोली लगाए गए प्रोजेक्ट्स या 18 महीनों के भीतर पूरे होने वाले कैप्टिव/ ओपन एक्सेस प्रोजेक्ट्स।
- नए विनिर्माता/ मॉडल्स— नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 2 साल में 800 मेगावाट तक की छूट।
भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्रक के बारे में
- वर्तमान में स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है।
- कुल विद्युत उत्पादन में पवन ऊर्जा का योगदान 4.69% है।
- स्थापित क्षमता 2014 में लगभग 21 GW थी, जो बढ़कर जून 2025 तक 51.3 GW हो गई है।
- राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के अनुसार, जमीन से 150 मीटर ऊंचाई पर भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 1164 GW है।
- भारत का लक्ष्य 2030 तक वैश्विक पवन ऊर्जा उपकरणों की 10% मांग पूरी करना है।