हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा जम्मू और कश्मीर में 2022 की एक मंज़ूरी को रद्द करने के फैसले को सही ठहराया। साथ ही, यह भी कहा कि पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) के साथ-साथ पुनर्भरण डेटा भी अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- पुनर्भरण अध्ययन की अनिवार्यता: पुनर्भरण अध्ययन के बिना DSR को सही नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसमें यह तय करने के लिए ज़रूरी डेटा नहीं होता कि कितनी रेत निकालना संधारणीय होगा।
- प्राकृतिक पुनरुत्पादन का सिद्धांत: जिस तरह वृक्षों को काटने से पहले उनका दोबारा उगना ज़रूरी है, उसी तरह नदियों को संतुलित बनाए रखने के लिए रेत निकालने से पहले रेत के पुनर्भरण का अध्ययन भी जरूरी है।
रेत खनन के बारे में:
- रेत खनन का अर्थ नदी के किनारों, भूमि या अन्य जगहों से प्राकृतिक रेत तथा इससे जुड़े घटकों, जैसे खनिज एवं पत्थर आदि को निर्माण कार्य व प्रसंस्करण के लिए निकालना है।
- असीमित रेत खनन के पर्यावरणीय प्रभाव: दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य वाद के निर्णय का हवाला देते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि असीमित रेत खनन से पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है, जैसे:
- नदी के किनारों का कटाव और प्राकृतिक पर्यावास का नुकसान;
- भूजल स्तर का नीचे जाना और जलभृतों को नुकसान;
- जैव विविधता के लिए खतरा, जिसमें मछली के प्रजनन स्थल भी शामिल हैं;
- नदी के नितलों के कमजोर होने से बाढ़ का खतरा बढ़ना;
- जल की गुणवत्ता में गिरावट और अत्यधिक गंदलापन आदि।
भारत में रेत खनन के लिए मौजूदा कानूनी ढांचा
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