इस स्टडी में कहा गया है कि आक्रामक पौधों और जानवरों के नए पारिस्थितिकी तंत्रों में फैलने से दुनिया भर के समाज को 2.2 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
- इनमें पौधे सर्वाधिक आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाली आक्रामक प्रजाति साबित हुई हैं। इसके बाद आर्थ्रोपॉड्स और स्तनधारी का स्थान हैं।
आक्रामक प्रजातियों के बारे
- ऐसे पौधे, जानवर या सूक्ष्मजीव जो प्राकृतिक रूप से किसी क्षेत्र की देशज प्रजाति नहीं होती हैं, लेकिन एक बार नए क्षेत्र में प्रवेश के बाद वे तेज़ी से फ़ैल जाती हैं और वहाँ की देशज प्रजातियों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती हैं।
- भारत में आक्रामक या इनवेसिव प्रजातियों के कुछ आम उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- लैंटाना कैमारा: यह प्रजाति स्थानीय वनों के विकास को अवरुद्ध कर देती है।
- पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस (कांग्रेस घास): यह खेतों में फैल जाती है।
- आइकोर्निया क्रेसिप्स (जलकुम्भी/Water hyacinth): जलाशयों में फैलकर अन्य जंतुओं का जीना मुश्किल कर देती है।
- अफ्रीकी कैटफिश: ये देशज मछलियों की विविधता के लिए खतरा हैं।
आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव
- खाद्य श्रृंखला पर असर: ये-
- देशज प्रजातियों के लिए उपलब्ध संसाधन छीन लेती हैं,
- पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाती हैं,
- कृषि उत्पादकता कम कर देती हैं और
- रोग भी फैलाती हैं।
- पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ना: ये स्थानीय प्रजातियों को समाप्त या कम करके जैव विविधता का क्षरण करती हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्रों की मदद करना: कुछ दुर्लभ मामलों में आक्रामक प्रजातियां घटती देशज प्रजातियों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करती हैं या पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए- कुछ विदेशी मधुमक्खियां परागण में मदद करती हैं।
नियंत्रण के उपाय
- रोकथाम: व्यापार, यात्रा और शिपिंग (जैसे-बैलास्ट वाटर प्रबंधन) पर सख्त निगरानी सुनिश्चित करके पारिस्थितिकी तंत्र में नई आक्रामक प्रजातियों के प्रवेश को रोकना चाहिए।
- प्रसार रोकने के उपाय:
- पौधों की बीमारियों, शिकारी कीटों, परजीवी, रोगजनकों जैसे जैविक नियंत्रण उपायों का उपयोग करके आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को रोका जा सकता है।
- यांत्रिक नियंत्रण, और
- शाकनाशी, पीड़कनाशी, कीटनाशक या कवकनाशी जैसे रासायनिक नियंत्रण का उपयोग करके इनका प्रसार रोका जा सकता है।
- उन्मूलन और पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली: प्रवेश के आरंभिक चरणों में आक्रामक प्रजातियों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद देशज प्रजातियों को फिर से लाकर और उनके पर्यावास में सुधार करते हुए पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली करनी चाहिए।