भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र ने ‘भारत में कारागार 2025’ रिपोर्ट जारी की है | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र ने ‘भारत में कारागार 2025’ रिपोर्ट जारी की है

    Posted 24 Nov 2025

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    Article Summary

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    रिपोर्ट में अत्यधिक भीड़भाड़, जातिगत पूर्वाग्रह, वेतन असमानता और पुरानी रूढ़िवादिता जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, तथा भारतीय जेलों के लिए मानवाधिकार आधारित सुधारों, कानूनी सहायता में वृद्धि और कुशल डेटा प्रणालियों की वकालत की गई है।

    इस रिपोर्ट में जेल नियमावलियों, रूढ़ियों, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, मजदूरी और तकनीकी सुधारों की समीक्षा की गई है। साथ ही, रिपोर्ट में जेल प्रशासन द्वारा कैदियों के प्रति  मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण रखने का सुझाव भी दिया गया है।  

    भारतीय जेलों से संबंधित मुख्य चिंताएं

    • जेल-प्रशासन: ‘जेल (कारागार)’ भारत के संविधान में सातवीं अनुसूची की सूची- II यानी राज्य सूची का विषय है। जाहिर है जेल प्रशासन से जुड़े विषय पर राज्य विधायिका को कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए अलग-अलग राज्यों में जेल-प्रशासन का ढांचा अलग-अलग है। 
      • भारत “कैदियों के साथ व्यवहार के लिए संयुक्त-राष्ट्र मानक न्यूनतम नियमावली” का अनुपालन करता है। इस नियमावली को ‘नेल्सन मंडेला नियमावली’ (The Nelson Mandela Rules) भी कहा जाता है। यह नियमावली जेल संस्थानों को मानवीय नजरिए से देखने की वकालत करती है।  
    • जेलों में क्षमता से अधिक कैदी: भारत में जेल अधिभोग दर (Occupancy Rate) 131.4% है। इसका तात्पर्य है कि भारत की जेलों में आधिकारिक क्षमता से 31.4% अधिक कैदी रह रहे हैं। प्रत्येक 4 में से 3 कैदी विचाराधीन (Undertrials) हैं।
      • खुली जेलों का कम इस्तेमाल होता है, जिनमें अधिभोग दर 74% है।  
    • रूढ़िवादी सोच (Stereotypes): कई जेल नियमावलियां जेल में सफ़ाई और स्वच्छता से संबंधित कार्यों को ‘तुच्छ’ (menial) या ‘अपमानजनक प्रकृति का कार्य’ मानती हैं। यह सोच समाज में निहित भेदभाव आधारित श्रम-विभाजन को बढ़ावा देती है।  
    • जाति के आधार पर भेदभाव: कुछ जेल नियमावलियों में जाति के आधार पर जेल में कार्य विभाजन के नियम अभी भी कायम हैं। 
      • यह प्रावधान सुकन्या शांथा मामले में असंवैधानिक घोषित किया गया है।
    • मजदूरी में अंतर: कैदियों को उनके श्रम के बदले मिजोरम में 20 रुपये मिलते हैं तो कर्नाटक में 524 रुपये  मिलते हैं। इस तरह मजदूरी में अधिक अंतर मौजूद है। 
      • मिजोरम में कैदियों को मिलने वाली मजदूरी सबसे कम न्यूनतम मजदूरी से भी बहुत कम है। 
    • महिला कैदी: जेल नियमावलियों में प्रजनन विकल्प (Reproductive choice) के अधिकारों को स्पष्ट नहीं किया गया है। महिला कैदियों को खाना पकाने जैसे ज्यादातर घरेलू कार्यों तक ही सीमित रखा गया है। इससे उन्हें ‘कार्य के समान अवसर’ से वंचित रखा गया है।  
    • विधिक सहायता अधिक प्रभावी नहीं होना: जेलों में भौतिक और डिजिटल अवसंरचनाओं की कमी है। इस वजह से कैदी, सरकार द्वारा संचालित कई विधिक सहायताओं का समुचित उपयोग नहीं कर पाते हैं।  

    आगे की राह

    • नियमावलियों से कुछ प्रकार के कार्यों को ‘तुच्छ’ (menial) और ‘अपमानजनक’ (degrading) बताने वाली रूढ़िगत शब्दावलियों को हटाया जाना चाहिए।   
    • जेलों में कार्य आवंटन में जातिगत भेदभाव समाप्त करने हेतु रोटेशन/रोस्टर प्रणाली लागू की जाए।
    • राज्य सरकारों को कैदियों की मजदूरी की हर तीन वर्ष में समीक्षा और संशोधन करनी चाहिए।
    • विचाराधीन कैदियों के मामलों को ‘अत्यावश्यक मामले’  के रूप में चिह्नित करके न्यायाधीशों द्वारा उनकी सुनवाई को प्राथमिकता सूची में रखा जाए।
    • अंतर-संचालकीय आपराधिक न्याय प्रणाली  (Inter-operable Criminal Justice System: ICJS) से जुड़े अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्म पर वास्तविक समय (Real-time) के आधार पर डेटा अपडेट सुनिश्चित किया जाए ताकि ई-प्रिज़न्स प्रणाली सफल हो सके। 
      • ICJS आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़ी संस्थाओं के बीच बिना रुकावट के डेटा आदान-प्रदान करने की एक पहल है।
    • Tags :
    • Supreme Court
    • Chief Justice
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