भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) पर एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क के लिए सुझाव जारी किए | Current Affairs | Vision IAS
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यह फ्रेमवर्क भारत के GCC इकोसिस्टम के निरंतर विस्तार और उन्नति को समर्थन देने के लिए एक सुनियोजित राष्ट्रीय दृष्टिकोण प्रदान करेगा।

ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) के बारे में

  • ये वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाए गए विदेशी केंद्र होते हैं, जो अपनी मूल कंपनी को विविध प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे-  IT सेवाएं, अनुसंधान और विकास (R&D) सेवाएं, ग्राहक सहायता सेवाएं इत्यादि।
  • महत्त्व: भारत ने स्वयं को GCCs के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया है। देश में दुनिया भर के कुल GCCs का लगभग 50% मौजूद हैं। ये भारत के राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.6% से 1.8% तक का योगदान देते हैं।
    • GCC इकोसिस्टम ने वित्त वर्ष 2025 में अनुमानित 10.4 मिलियन नौकरियों का समर्थन किया है, जिसमें 2.1 मिलियन प्रत्यक्ष कर्मचारी शामिल हैं।

GCC पर राष्ट्रीय नीति को तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित किया जाएगा: 

  • रणनीतिक प्राथमिकताएं:
    • 2030 तक विकास के उद्देश्य: इसमें 5,000 GCCs की स्थापना; सकल मूल्य वर्धन (GVA) में लगभग 470-600 बिलियन डॉलर का समग्र योगदान; तथा 20-25 मिलियन लोगों को रोजगार सृजन शामिल है।
    • अवसर के उभरते क्षेत्र: इसमें क्वांटम कंप्यूटिंग, डिजिटल हेल्थकेयर, इंडस्ट्री 4.0 आदि शामिल हैं।
  • सफलता हेतु महत्वपूर्ण कारक:
    • प्रतिभावान कार्यबल का विकास: इसके लिए उद्योग-अकादमिक जगत के मध्य सहयोग, इससे संबंधित विशेष पाठ्यक्रम आदि को सुनिश्चित करना चाहिए।
    • अवसंरचना: इसमें विश्व स्तरीय प्लग एंड प्ले अवसंरचना, डिजिटल इकोनॉमिक जोन, डेटा केंद्र, क्लाउड अवसंरचना आदि का विकास शामिल है।
    • स्थानिक क्षमता: टियर-2/3 शहरों में नवाचार केंद्र, डेटा केंद्र, अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र आदि स्थापित करना।
  • प्रदर्शन को बढ़ाने वाले घटक:
    • नीतिगत उपाय: इसके तहत GCCs में निवेश करने वालों के लिए सिंगल विंडो प्लेटफॉर्म; मंजूरी प्रदान करने की प्रक्रिया में तेजी; कर संबंधी राहत जैसे प्रोत्साहन, निर्यात प्रोत्साहन और इन्वेस्टमेंट अलाउंस जैसे उपाय शामिल हैं।
    • निवेश संबंधी सुगमता: इसके लिए पारंपरिक बाजारों (अमेरिका, ब्रिटेन आदि) और कम पहुंच वाले क्षेत्रों (जापान, नॉर्डिक देश, ऑस्ट्रेलिया आदि) को प्राथमिकता देनी चाहिए तथा विनियामकीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
    • गवर्नेंस-फ्रेमवर्क: इसके तहत राष्ट्रीय GCC परिषद, एक समर्पित GCC प्रकोष्ठ, अंतर-मंत्रालयी कार्य समूह और उद्योग सलाहकार पैनल का गठन करना चाहिए।
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