इस संशोधन विधेयक का उद्देश्य मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले वन्य जीवों का वध करने की प्रक्रिया को आसान बनाना है।
- यह विधेयक केरल में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के मद्देनजर लाया गया है और यह पहली बार है कि किसी राज्य ने केंद्रीय कानून में इस तरह का संशोधन प्रस्तावित किया है।
इस विधेयक के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- इसमें मुख्य वन्यजीव वार्डन (CWW) को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वन्यजीव को मारने का आदेश दे सके, जो मानव आबादी वाले क्षेत्रों में किसी व्यक्ति पर हमला करता है।
- वर्तमान में, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम CWW को अनुसूची I, II, III या IV में सूचीबद्ध तब वन्यजीवों के शिकार के लिए परमिट देने का अधिकार देता है, यदि वे मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
- यह विधेयक राज्य सरकार को अनुसूची 2 में शामिल किसी भी वन्यजीव को “वर्मिन यानी पीड़क” घोषित करने का अधिकार देता है।
- वर्तमान में, WPA की धारा 62 केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II में शामिल वन्यजीवों को छोड़कर, किसी भी वन्यजीव को वर्मिन घोषित कर सके तथा उन्हें अनुसूची V में शामिल कर सके।
- किसी भी वन्यजीव को वर्मिन घोषित करने से निर्धारित क्षेत्र में सीमित अवधि के लिए उसे मारने की वैधता प्राप्त हो जाती है।
- वर्तमान में, WPA की धारा 62 केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II में शामिल वन्यजीवों को छोड़कर, किसी भी वन्यजीव को वर्मिन घोषित कर सके तथा उन्हें अनुसूची V में शामिल कर सके।
बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए जिम्मेदार कारक
- पर्यावास की हानि: तीव्र शहरीकरण, वनों की कटाई, तथा मानव द्वारा अतिक्रमण के कारण प्रमुख वन्यजीव गलियारे अवरुद्ध हो रहे हैं।
- संसाधन के लिए प्रतिस्पर्धा: भोजन/ पानी की कमी संघर्ष को बढ़ाती है।
- जलवायु परिवर्तन: चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि से प्रवास के पैटर्न में बदलाव आ रहा है, जिससे वन्यजीव गांवों या मानव आबादी वाले क्षेत्रों में जाने लगे हैं।
- अवैध शिकार एवं अवैध व्यापार: इससे पारिस्थितिकी-तंत्र को नुकसान पहुंचता है और प्रजातियां विस्थापित हो जाती हैं।