यह समझौता WTO के 12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन (2022) में अपनाया गया था। WTO के दो-तिहाई सदस्य देशों द्वारा इसे औपचारिक रूप से स्वीकार कर लेने के उपरांत यह समझौता लागू हुआ है।
मत्स्यन सब्सिडी पर WTO समझौते के बारे में
- यह हानिकारक सब्सिडी पर अंकुश लगाने के लिए बाध्यकारी नियम प्रभावी करता है।
- यह WTO का पहला बहुपक्षीय समझौता है, जिसके मूल में पर्यावरणीय संधारणीयता है।
- यह सतत विकास लक्ष्य (SDG)-14 की प्राप्ति में मददगार साबित होगा।
- सतत विकास लक्ष्य (SDG)-14: महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण एवं सतत उपयोग करना।
- अपने लघु मछुआरों के लिए सब्सिडी की सुरक्षा, आजीविका की सुरक्षा व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की वजह से भारत इस समझौते में शामिल नहीं हुआ।
समझौते की मुख्य विशेषताएं
- निषिद्ध सब्सिडी: अवैध, असूचित और अविनियमित (IUU) मत्स्यन; ऐसे मत्स्य भंडार जिनका अत्यधिक दोहन किया जा चुका है; अविनियमित खुले समुद्र में मत्स्यन से संबंधित गतिविधियों आदि में योगदान देने वाली सब्सिडी।
- सदस्यों को मत्स्यन से संबंधित जानकारी प्रदान करनी होगी।
- WTO मत्स्य कोष: इसका गठन विकासशील और अल्पविकसित सदस्य देशों को समझौते के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करने के लिए किया गया है।
- यह कोष WTO सदस्यों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।
- समझौते के तहत विकासशील देशों को विशेष और विभेदक उपचार की सुविधा प्रदान की गई है। हालांकि, यह सुविधा कार्यान्वयन में कुछ लचीलापन रखने के लिए नियमों के समान समग्र फ्रेमवर्क के तहत प्रदान की गई है।
समझौते की आवश्यकता क्यों है?
- 2021 में वैश्विक मत्स्य भंडार के 35.5% हिस्से का अत्यधिक दोहन हो चुका था, जबकि 1974 में यह केवल 10% था।
- सरकारें हर साल लगभग 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सब्सिडी देकर मत्स्यन क्षमता बढ़ाती हैं। इससे अपूरणीय क्षमता में मत्स्यन और अति-मत्स्यन जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।