भारत ने ग्लोबल साउथ के देशों के बीच अधिक परामर्श और संयुक्त राष्ट्र सुधारों के लिए संयुक्त प्रयास पर ज़ोर दिया।
- ग्लोबल साउथ की अवधारणा में लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया के क्षेत्र शामिल हैं। ये वे विकासशील राष्ट्र हैं, जिनका उपनिवेशवाद और आर्थिक हाशियाकरण का साझा ऐतिहासिक अनुभव रहा है।
उभरती विश्व व्यवस्था में ग्लोबल साउथ की भूमिका
- बहुपक्षीय सुधार: ये देश एक निष्पक्ष और अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक, WTO जैसी वैश्विक गवर्नेंस संस्थाओं में सुधार का समर्थन करते हैं।
- आर्थिक शक्ति: यह देश वैश्विक GDP संवृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इनके पास विशाल उपभोक्ता बाजार और युवा कार्यबल मौजूद है।
- बहुध्रुवीयता को मजबूत करना: ग्लोबल साउथ के देश न्यू डेवलपमेंट बैंक, अफ्रीकी संघ, ब्रिक्स जैसे वैकल्पिक मंचों की स्थापना के जरिए बहुध्रुवीयता को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
- सतत विकास: गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग एवं साझेदारी के माध्यम से सतत विकास को बढ़ावा देते हैं।
ग्लोबल साउथ के साथ भारत की भागीदारी
- आर्थिक सहयोग: इसके तहत भारत ने विशेष रूप से अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापार संबंधों में वृद्धि की है। साथ ही दूरसंचार, फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रकों में महत्वपूर्ण निवेश किया है।
- विकास सहायता: भारत इन देशों में अवसंरचना का विकास कर रहा है और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित कर रहा है। साथ ही, उन्हें ऋण, तकनीकी सहायता आदि प्रदान करता है।
- बहुपक्षीय भागीदारी: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन जैसे बहुपक्षीय संगठनों के गठन में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका तथा भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन जैसी साझेदारियों ने ग्लोबल साउथ के साथ भारत की भागीदारी को बढ़ावा दिया है।
- राजनयिक सेतु: भारत ने रणनीतिक स्वायत्तता की नीति अपनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर मतभेदों को खत्म करने के लिए पश्चिम एवं ग्लोबल साउथ दोनों के साथ जुड़ाव रखता है।