संघर्ष समाधान में भारत की भूमिका (India’s Role in Conflict Resolution) | Current Affairs | Vision IAS
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    संघर्ष समाधान में भारत की भूमिका (India’s Role in Conflict Resolution)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, रूस के राष्ट्रपति ने कहा है कि वह रूस-यूक्रेन संघर्ष के समाधान के प्रयासों के संबंध में भारत, ब्राजील और चीन के साथ लगातार संपर्क में हैं।

    अन्य संबंधित तथ्य

    • रूसी राष्ट्रपति की यह टिप्पणी भारत के प्रधान मंत्री की कीव यात्रा के बाद आई है, जहां उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ वार्ता की।
      • इससे पहले, भारत के प्रधान मंत्री ने रूस का दौरा किया था।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध दो साल से अधिक समय से चल रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह यूरोप का सबसे बड़ा संघर्ष है, जिसके जल्द खत्म होने के कोई संकेत नहीं दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए-
      • यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए आयोजित किए गए स्विस शांति शिखर सम्मेलन में रूस ने भाग नहीं लिया था।
      • ब्राजील और चीन ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के समाधान हेतु 6 सूत्री प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें रूस-यूक्रेन शिखर सम्मेलन की बात कही गई थी। हालांकि, यूक्रेन ने इसे खारिज कर दिया था।

    वैश्विक संघर्षों के समाधान में सक्रिय मध्यस्थ के रूप में भारत की उभरती भूमिका

    • भारत एक सक्रिय मध्यस्थ के रूप में: भारत की कूटनीति पहले की तुलना में अधिक सक्रिय हो गई है। इससे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में घनिष्ठता लाने और क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने में एक भरोसेमंद मध्यस्थ के रूप में भारत का महत्त्व बढ़ा है।
      • उदाहरण के लिए, 2018 में भारत के कूटनीतिक प्रयासों के चलते दिल्ली से तेल अवीव (इजरायल) के लिए उड़ानों हेतु सऊदी हवाई क्षेत्र के उपयोग पर लगे 70 साल पुराने प्रतिबंध को समाप्त कर दिया गया था। ज्ञातव्य है कि सऊदी अरब ने इजरायल के लिए उड़ानों हेतु सऊदी हवाई क्षेत्र के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। 
    • विदेश नीति के प्रति भारत का 5-'स' (सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि) दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक है और शांति हेतु मध्यस्थता के लिए भारत को विशिष्ट रूप से प्रस्तुत करता है।
    • भारत का दृढ़ विश्वास है कि संवाद और कूटनीति ही संघर्ष से बाहर निकलने का मार्ग हैं: उदाहरण के लिए- CNN की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के प्रधान मंत्री ने विश्व के अन्य नेताओं के साथ मिलकर 2022 में कीव पर मास्को द्वारा परमाणु हमले को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • भारत, ग्लोबल साउथ की अभिव्यक्ति के रूप में: भारत ने अपनी G-20 की अध्यक्षता के दौरान विनाशकारी युद्ध (रूस-यूक्रेन युद्ध) के परिणामों को रेखांकित करके संघर्ष समाधान को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया था।
    • 'वसुधैव कुटुंबकम' भारत का प्राचीन दर्शन और 'शांति के पैरोकार' के रूप में समृद्ध इतिहास: ये वैश्विक मामलों में भारत को एक मध्यस्थ और सुलहकर्ता के रूप में विशिष्ट रूप से प्रस्तुत करते हैं।
      • उदाहरण के लिए, भारत ने अपने इतिहास में कभी भी सैन्यवाद और युद्ध के सिद्धांत को नहीं अपनाया है।
    • विश्व के साथ भारत का सक्रिय जुड़ाव: संवाद को बढ़ावा देना, मानवता के समक्ष उत्पन्न खतरे के दौरान प्रथम सहायता प्रदाता के रूप में कार्य करना और जरूरत के समय वैश्विक समुदाय की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहना भारत की विदेश नीति का हिस्सा रहा है। उदाहरण के लिए, 2014 में मालदीव में उत्पन्न हुए जल संकट के दौरान भारत वहां पर पीने का पानी उपलब्ध कराने वाला पहला देश था।
      • इस नई पहचान ने भारत को संघर्ष को सुलझाने में अपनी स्थिति का लाभ उठाने में मदद की है।
    • संघर्ष के समाधान का अनुभव: आंतरिक और क्षेत्रीय दोनों प्रकार के संघर्षों से निपटने में भारत का अनुभव उसे वैश्विक पटल पर एक संभावित शांति निर्माता के रूप में स्थापित करता है (बॉक्स देखें)।

    शांति के लिए मध्यस्थ के रूप में भारत के ऐतिहासिक प्रयास

    • 1955: भारत ने ऑस्ट्रिया से सोवियत सैनिकों की वापसी के लिए USSR और ऑस्ट्रिया के बीच मध्यस्थता की थी। साथ ही, भारत ने ऑस्ट्रिया को स्वयं को एक तटस्थ देश घोषित करने के लिए उससे संवाद भी किया था। 
    • 1956: भारत ने कोरियाई संकट में मध्यस्थता की थी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और USSR को शामिल किया था।
    • 1950 और 60 के दशक: भारत, वियतनाम युद्ध में पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय आयोग का सह-अध्यक्ष था।
    • 1979: भारत के वित्त मंत्री ने अपनी चीन यात्रा रद्द कर दी  थी और चीन की आक्रामकता पर सक्रिय रूप से वियतनाम का समर्थन किया था।

    वैश्विक संघर्षों के समाधान में मध्यस्थ के रूप में भारत की भूमिका के समक्ष बाधाएं

    • कूटनीतिक साझेदारियां: विश्व के विविध देशों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी कथित तौर पर उसके तटस्थता के रुख को सीमित करती है। उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन संघर्ष के मुद्दे पर रूस के खिलाफ लाए गए संयुक्त राष्ट्र के संकल्पों पर भारत का अनुपस्थित रहना। 
    • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता: पड़ोसी देशों के साथ भारत का तनाव उसकी मध्यस्थ की भूमिका को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, भारत-पाकिस्तान के बीच शत्रुतापूर्ण संबंध, अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका को जटिल बनाते हैं।
    • आर्थिक प्राथमिकताएं: कूटनीतिक प्रयासों को आर्थिक हितों के साथ संतुलित करना भारत की मध्यस्थता की कार्रवाई को बाधित कर सकता है। उदाहरण के लिए, ईरान से भारत का तेल आयात।
    • सीमित वैश्विक प्रभाव: संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसी स्थापित वैश्विक शक्तियों की तुलना में भारत की कूटनीतिक क्षमता अपेक्षाकृत सीमित है। इसके कारण जटिल अंतर्राष्ट्रीय विवादों में प्रभावी ढंग से मध्यस्थता करने की भारत की क्षमता प्रभावित होती है।
    • घरेलू स्तर पर मौजूद चुनौतियां: भारत में मौजूद कुछ आंतरिक मुद्दे जैसे- आंतरिक संघर्ष, उग्रवाद आदि भारत को शांति के एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने की उसकी क्षमता को सीमित करते हैं।
      • उदाहरण के लिए- भारत ने कश्मीर पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार कर दिया है।

    आगे की राह

    • मध्यस्थ के रूप में सक्रिय भूमिका निभाना: भारत सभी हितधारकों के लिए शांति वार्ता हेतु एक तटस्थ मंच प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिए, भारत रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान हेतु एक वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी कर सकता है।
    • साझेदारी: भारत समान विचारधारा वाले राष्ट्रों (जैसे-दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया आदि) और पारंपरिक पश्चिमी शांति समर्थकों (स्विट्जरलैंड, नॉर्वे आदि) के साथ मिलकर शांति स्थापना प्रयासों में अधिक योगदान दे सकता है।
    • अपने अनुभव का उपयोग करना: भारत को संयुक्त राष्ट्र तंत्र, राजनयिक नेतृत्व, गुटनिरपेक्षता और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का लाभ उठाकर अपने कोरियाई संकट के दौरान शांति प्रयासों का अनुकरण करना चाहिए।
    • क्षमता निर्माण: वैश्विक संघर्षों का अध्ययन करने के लिए विदेश मंत्रालय और थिंक टैंक्स के भीतर शांति टीमों का गठन करना चाहिए। साथ ही, नॉर्वे के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ओस्लो (PRIO) के समान समाधान रणनीति विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।

    निष्कर्ष

    संघर्ष समाधान में भारत की भूमिका लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है, क्योंकि वर्तमान में यह ग्लोबल साउथ की एक मजबूत अभिव्यक्ति के रूप में उभर रहा है। अनौपचारिक भूमिका से सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय संलग्नता की ओर बढ़ते हुए, भारत के कूटनीतिक प्रयास इसके बढ़ते वैश्विक प्रभाव और आकांक्षाओं को दर्शाते हैं।

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    • India’s Role in Conflict Resolution
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    • Russia-Ukraine Conflict
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