भारत की एक्ट ईस्ट नीति के 10 वर्ष (10 Years of India’s Act East Policy) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत की एक्ट ईस्ट नीति के 10 वर्ष (10 Years of India’s Act East Policy)

    Posted 30 Oct 2024

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    विशेषज्ञों के अनुसार, हाल ही में भारतीय प्रधान मंत्री की सिंगापुर यात्रा का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया और अधिक व्यापक रूप से प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत के संबंधों को नई गति प्रदान करना है।

    अन्य संबंधित तथ्य

    • यह यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2024 में भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक दशक पूरा होने जा रहा है। ज्ञातव्य है कि भारत के प्रधान मंत्री ने नवंबर, 2014 में म्यांमार में आयोजित 9वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान + भारत शिखर सम्मेलन में 'एक्ट ईस्ट नीति' की घोषणा की थी।

    भारत और पूर्वी एशिया: लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट नीति तक

    • लुक ईस्ट नीति (LEP) की शुरुआत: शीत युद्ध के बाद भारत ने अपने एक रणनीतिक साझेदार के रूप में सोवियत संघ (USSR) को खो दिया था। इसलिए, 1990 के दशक की शुरुआत में आरंभ की गई LEP का उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके दक्षिण-पूर्व एशियाई सहयोगियों के साथ संबंध स्थापित करना था, ताकि चीन को प्रतिसंतुलित किया जा सके।
    • लुक ईस्ट पॉलिसी और आसियान: 'लुक ईस्ट' पॉलिसी को प्रभावी बनाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए, भारत 1992 में आसियान समूह में "सेक्टोरल डायलॉग पार्टनर (क्षेत्रीय संवाद साझेदार)" के रूप में शामिल हुआ।
      • भारत 1995 में "डायलॉग पार्टनर" बना, 2002 में शिखर सम्मेलन स्तर का साझेदार बना तथा 2012 में इसने आसियान के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित की।
    • भारत की एक्ट ईस्ट नीति (AEP): भारत ने 2014 में 'एक्ट ईस्ट' नीति की शुरुआत की थी। इस नीति की परिकल्पना मूलतः एक आर्थिक पहल के रूप में की गई थी, जिसमें बाद में राजनीतिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक आयाम जुड़ गए।

    एक्ट ईस्ट नीति (AEP) की प्रभावशीलता

    • पूर्वी एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत तक AEP का विस्तार: लुक ईस्ट नीति पूरी तरह से आसियान पर केंद्रित थी, वहीं एक्ट ईस्ट नीति में भारत ने अपने रणनीतिक दायरे का विस्तार किया तथा विस्तारित पड़ोस में आसियान को केंद्र में रखते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर जोर दिया।
      • उदाहरण के लिए- भारत ने 2019 में हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) शुरू की। 
    • बहुपक्षीय और क्षेत्रीय जुड़ाव को मजबूत करना: भारत आसियान, बिम्सटेक, एशिया सहयोग वार्ता (ACD), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) आदि के साथ गहन साझेदारी स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। उदाहरण के लिए- हाल ही में बिम्सटेक चार्टर को अपनाया जाना।
    • संस्थागत सहयोग में वृद्धि: भारत संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगियों (जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया) के साथ संस्थागत सहयोग में वृद्धि कर रहा है। उदाहरण के लिए- भारत, अमेरिका के नेतृत्व वाली इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉसपेरिटी (IPEF), सप्लाई चेन रेसिलिएंस इनिशिएटिव (SCRI) आदि में शामिल हो गया है।
      • जापान ने पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान किया है।
    • रक्षा कूटनीति और निर्यात में भारत की सक्रिय भूमिका:
      • 2022 में, फिलीपींस, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के तट-आधारित एंटी-शिप संस्करण का पहला निर्यात गंतव्य बनकर भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी में प्रवेश किया। 
      • भारत-वियतनाम मिलिट्री लॉजिस्टिक्स पैक्ट: यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य अड्डों तक पहुंच सुनिश्चित करने तथा रक्षा सामग्री के संयुक्त उत्पादन की मात्रा और दायरे को बढ़ाने के लिए किया गया है।
    • कनेक्टिविटी संबंधी परियोजनाएं शुरू करना: कलादान मल्टी-मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना (भारत के मिजोरम को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह से जोड़ती है); भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग; मेकांग-भारत आर्थिक गलियारा; आदि।
    • भारत की सक्रिय सामाजिक-सांस्कृतिक और विकासात्मक पहुंच: लोगों के बीच बढ़ते आपसी संबंध (करीब 2 मिलियन प्रवासी समुदाय) तथा प्रधान मंत्री की ब्रुनेई और सिंगापुर यात्रा जैसी महत्वपूर्ण राजकीय यात्राएं इसका प्रमाण हैं।
      • प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों की ओर विकासात्मक पहुंच: फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन (FIPIC) की स्थापना और भारत की वैक्सीन मैत्री पहल (जिसके तहत पापुआ न्यू गिनी को टीके प्रदान किए गए थे) आदि।

    एक्ट ईस्ट एशिया नीति के कार्यान्वयन के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियां

    • अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के विकास में देरी: कलादान मल्टी-मॉडल परियोजना में देरी के कारण इसका बजट अपनी प्रारंभिक लागत से छह गुना बढ़कर 3,200 करोड़ रुपये हो गया है, जो कि 2008 में 536 करोड़ रुपये था।
    • बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल और नागरिक अशांति: वर्तमान नई राजनीतिक स्थिति में भारत-बांग्लादेश कनेक्टिविटी परियोजनाओं के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बन गई है। 
    • भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थियों का आगमन: इससे सीमाओं पर अस्थिरता पैदा हुई है और सीमावर्ती राज्यों में नृजातीय संघर्ष पैदा हुआ है। उदाहरण के लिए- मणिपुर में कुकी एवं मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष से उत्पन्न अशांति।
    • हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव: इससे बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह के माध्यम से सामरिक समुद्री व्यापार मार्गों तक भारत की पहुंच प्रभावित हो सकती है।
    • चीन के साथ प्रतिस्पर्धा: पूर्वी एशिया में चीन का आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव, भारत के लिए इस क्षेत्र में बढ़त हासिल करने में प्रमुख रुकावट है। उदाहरण के लिए- 2023 में, चीन और आसियान के बीच व्यापार 911.7 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया था। 
    • आसियान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि: वर्ष 2010 में आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) के लागू होने के बाद से ही भारत को हर साल करीब 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा उठाना पड़ था। वित्त वर्ष 2023 में भारत का आसियान के साथ लगभग 44 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा रहा था।

    आगे की राह

    • व्यापार: AITIGA में सुधार पर जल्द-से-जल्द वार्ता शुरू करनी चाहिए। साथ ही, आसियान के साथ भारत के बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए समाधान तलाशने की भी जरूरत है।
    • बुनियादी ढांचा: लंबित अवसंरचनात्मक परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द पूरा करके कनेक्टिविटी को बेहतर बनाना चाहिए।
    • सुरक्षा सहयोग: हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
    • सांस्कृतिक कूटनीति: विशेष रूप से बौद्ध-बहुल देशों के साथ साझा सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाना चाहिए।
    • बहुपक्षीय सहभागिता: जापान, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान जैसी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
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    • Act East Policy
    • Indo-Pacific Oceans Initiative
    • Look East Policy
    • ASEAN Trade in Goods Agreement (ATIGA)
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