ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए ‘राष्ट्रीय समान अवसर नीति’ बनाने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने समिति का गठन किया | Current Affairs | Vision IAS
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सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष आने वाले मुद्दों पर प्रकाश डाला, जिनमें भेदभाव, पहचान संबंधी बाधाएं, सामाजिक कलंक और अपर्याप्त कल्याण शामिल हैं, तथा राष्ट्रीय समान अवसर नीति बनाने का आग्रह किया।

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'जेन कौशिक बनाम भारत संघ और अन्य' मामले में,सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 में निहित मुद्दों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा सामना किए जा रहे भेदभाव को उजागर किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा सामना किए जाने वाले निम्नलिखित मुद्दों को रेखांकित किया

  • लाभ प्राप्त करने में कठिनाई: 2019 का कानून लाभ प्राप्त करने के लिए पहचान पत्र (ID कार्ड) अनिवार्य करता है। इससे प्रक्रिया जटिल हो जाती है और कई पात्र ट्रांसजेंडर वंचित रह जाते हैं।
  • उचित आवास का अभाव: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शैक्षणिक संस्थाओं, 'गरिमा गृह' आश्रय गृहों जैसी सार्वजनिक संस्थाओं तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • प्रशासनिक अक्षमता: उदाहरण के लिए- अधिकांश राज्यों ने अब तक ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन सेल्स स्थापित नहीं किए हैं। 
  • सामाजिक हेय दृष्टि: समाज में अब भी ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति स्वीकार्यता, जागरूकता और सहानुभूति की कमी है।
  • कानूनी और पहचान संबंधी मुद्दे: 2019 का अधिनियम लैंगिक पहचान के प्रमाणन के लिए जिला मजिस्ट्रेट (DM) द्वारा प्रमाणीकरण अनिवार्य करता है, जो स्व-पहचान के अधिकार का उल्लंघन है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रमुख प्रावधान

  • परिभाषा: ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह है, जिसकी लैंगिक पहचान जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाती है।
  • पहचान की मान्यता: यह अधिनियम स्व-अनुभूत लैंगिक पहचान का अधिकार प्रदान करता है। ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) द्वारा जारी किया गया पहचान प्रमाण-पत्र अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करता है।
  • भेदभाव का  निषेध: शिक्षा, नियोजन, निवास आदि सभी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव निषिद्ध है।
  • सरकार द्वारा उपाय: पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाना, जैसे- व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवा आदि।
  • अधिनियम राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए उठाए गए अन्य कदम

  • NALSA निर्णय (2014): इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी रूप से 'थर्ड जेंडर' के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पोर्टल: इसे पहचान प्रमाण-पत्र और पहचान-पत्र प्राप्त करने के लिए लॉन्च किया गया है। इसने किसी भी प्रकार के भौतिक इंटरफ़ेस की आवश्यकता समाप्त कर दी है।
  • स्माइल/ SMILE (आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों को सहायता) योजना: इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का व्यापक कल्याण और पुनर्वास करना है।
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