IUCN वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक 4 रिपोर्ट में पश्चिमी घाट को "सिग्निफिकेंट कंसर्न" श्रेणी में शामिल किया गया | Current Affairs | Vision IAS
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IUCN वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक 4 रिपोर्ट में पश्चिमी घाट को "सिग्निफिकेंट कंसर्न" श्रेणी में शामिल किया गया

Posted 27 Oct 2025

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रिपोर्ट में पश्चिमी घाट और दो भारतीय राष्ट्रीय उद्यानों को विकास, आवास हानि, जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियों के कारण जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन पर पड़ने वाले खतरों के कारण "महत्वपूर्ण चिंता" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

पश्चिमी घाट के अलावा, भारत के निम्नलिखित दो राष्ट्रीय उद्यान भी "सिग्निफिकेंट कंसर्न" श्रेणी में शामिल किए गए हैं:

  1. असम का मानस राष्ट्रीय उद्यान और 
  2. पश्चिम बंगाल का सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान।  
  • IUCN वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक रिपोर्ट सभी विश्व धरोहर स्थलों के प्राकृतिक मूल्यों के आधार पर उनके संरक्षण की संभावनाओं का आकलन करती है।
    • इस रिपोर्ट में स्थलों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- गुड, गुड विद सम कंसर्न, सिग्निफिकेंट कंसर्न, और क्रिटिकल। 
    • सिग्निफिकेंट कंसर्न का अर्थ है कि विश्व धरोहर स्थल के मूल्य और उसकी मूलभूत विशेषताएं कई मौजूदा और/या संभावित खतरों का सामना कर रहे हैं, जिनके लिए अतिरिक्त संरक्षण उपाय करना अनिवार्य है।

पश्चिमी घाट के बारे में

  • लंबाई: यह लगभग 1,600 कि.मी. लंबी पर्वत श्रृंखला हिमालय से भी पुरानी है और भारत के पश्चिमी तट के समानांतर फैली हुई है।
  • यह छह राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु) में फैली हुई है।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है तथा पृथ्वी के 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक है।
  • इसे विश्व के 8 सबसे महत्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक माना गया है। इसमें वैश्विक रूप से संकटग्रस्त लगभग 325 प्रजातियां पाई जाती हैं, जैसे नीलगिरि तहर।
  • यह भूमध्य रेखा से परे उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों का सबसे अच्छा उदाहरण है।
  • यह दक्षिण-पश्चिम से आने वाली आर्द्र एवं वर्षा करने वाली मानसूनी पवनों के मार्ग में एक अवरोधक पर्वत श्रृंखला के रूप में मौजूद है और इस क्षेत्र की उष्णकटिबंधीय जलवायु को संतुलित रखता है। इस प्रकार यह भारत के मानसून को प्रभावित करता है। 

पश्चिमी घाट के समक्ष खतरे

  • अवसंरचना का विकास: इस क्षेत्र में नीलगिरी में प्रस्तावित सिल्लाहल्ला पंप स्टोरेज जलविद्युत परियोजना सहित सैकड़ों जलविद्युत परियोजनाएं मौजूद हैं।
  • भूमि उपयोग में परिवर्तन: इस क्षेत्र में चाय, कॉफी, रबड़ और पाम जैसी फसलों की खेती तथा पशु चराई, जलाशय व सड़क निर्माण आदि के लिए काफी वन क्षेत्र की कटाई कर दी गई है। 
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: इस क्षेत्र के कई भागों में घनी आबादी और कृषि के विस्तार से मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है।
  • जलवायु परिवर्तन: इसके चलते नीलगिरी फ्लाईकैचर जैसी प्रजातियों को गर्म निचले इलाकों से ठंडे ऊंचे क्षेत्रों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियां: इस क्षेत्र में यूकेलिप्टस और अकेशिया जैसी प्रजातियां प्राकृतिक वनों की जगह ले रही हैं।
  • Tags :
  • IUCN World Heritage Outlook 4 report
  • Significant Concern Outlook
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